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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं) तो मैं इतने वर्ष जीवित न रहा होता। मैंने अपने समस्त जीवनमें किसीके साथ अन्याय नहीं किया है, मैंने अपने सार्वजनिक या व्यक्तिगत जीवनमें कभी न्याय विरुद्ध कार्रवाई नहीं की है। मैंने शिक्षकका दम्भ नहीं किया, किन्तु यदि मेरे पास कोई कुछ पूछने आया तो मैंने उसे उत्तर देने से इनकार नहीं किया। इसके अतिरिक्त मैं धनी और निर्धन सबको समान भावसे उत्तर देता हूँ। तिसपर भी यदि मेरे उपदेशोंसे कोई सुधरा न हो तो इसमें मेरा दोष नहीं माना जाना चाहिए। यदि कोई यह कहे कि मैंने एकको एक बात बताई और दूसरेको दूसरी तो यही मानना चाहिए कि वह सत्य नहीं है।

"आप जानते हैं, यह प्रश्न भी किया गया है कि इतने अधिक लोग अपना समय मेरे साथ क्यों बिताना चाहते हैं। जो ज्ञानी नहीं हैं, किन्तु ज्ञानका दम्भ करते हैं, उनसे जब प्रश्न पूछे जाते हैं तब अन्य लोग सदा सुननेके लिए आतुर रहते हैं। इसमें उन्हें बड़ा मजा आता है। मैं प्रश्न पूछना अपना देवप्रदत्त कर्तव्य समझता हूँ। मैंने इसमें कुछ बुरा नहीं किया। यदि मैंने अपनी शिक्षासे युवकोंको बिगाड़ा हो तो उनमें से जो अब बड़े हो गये हैं और अपना हित समझ सकते हैं वे आपके सम्मुख आकर मुझपर आरोप लगायें। यदि वे आपके सामने न आयें तो उनके सगे-सम्बन्धी आयें और शिकायत करें। मुझे इस सभामें वे युवक और उनके सगे-सम्बन्धी दिखाई पड़ रहे हैं। मेलीटसने उनमें से किसीको साक्षीकी तरह क्यों पेश नहीं किया? यदि मेलीटस और अन्य वादी इस बातको भूल गये हों तो मैं उनको अब भी इसकी अनुमति देता हूँ। वे अवश्य उन लोगोंकी साक्षी लें। वे मेरे विरुद्ध कुछ कहने के बजाय यह कहेंगे कि मेरी संगति से उनके बच्चोंको लाभ पहुँचा है और इस प्रकार मेरे पक्ष में बोलने में उनका हेतु न्यायके अतिरिक्त अन्य कुछ लाभ प्राप्त करना न होगा।

"मुझे अपनी सफाईमें जो कुछ कहना था उसमें से बहुत-कुछ तो मैं कह चुका। हम लोगों में यह प्रथा है कि जिसपर मुकदमा चलता है उसके सगे-सम्बन्धी न्यायालय में आकर फरियाद करते हैं, दयाकी भीख माँगते हैं और कैदी स्वयं रोते-धोते हैं। मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है, न करना ही चाहता हूँ। इससे भी कदाचित् आपमें से कुछ लोग नाराज हों। मेरे सगे-सम्बन्धी हैं--तीन बेटे हैं, एक बड़ा और दो छोटे। किन्तु मैं उनमें से किसीको उपस्थित करना नहीं चाहता। मैं इससे आपका अपमान नहीं करता। मैं इसमें आपका अपमान नहीं मानता। आप इसे मेरी अशिष्टता न मानें। हम इस बातको एक ओर रखेंगे कि मैं मृत्युसे नहीं डरता। किन्तु मुझे लगता है कि इतनी आयु तक पहुँचकर और अपनी अच्छी या बुरी प्रतिष्ठाको ध्यानमें रखकर मेरे द्वारा अपने सगे-सम्बन्धियोंको लाकर आपके सम्मुख रुलाना आपकी और मेरी हीनता है। मुझे यह शोभा नहीं देता। यह तो सभी स्वीकार करते हैं कि सुकरातमें सामान्य मनुष्योंसे कुछ विशेषता है। यदि आपमें से कोई ऐसा विशिष्ट व्यक्ति हो और उसपर ऐसा मुकदमा चलाया जाये जैसा मुझपर चलाया जा रहा है तो उस व्यक्तिका मृत्युके भयसे ऐसा रोना-धोना कराना लज्जाजनक माना जायेगा। यदि मृत्यु होनेमें कोई दुःख हो और मृत्युसे एक बार बचनेपर अमर हो जाते हों तो कदाचित् सगे-सम्बन्धियों को लाकर दयाभाव उत्पन्न करनेका बचाव किया जा सके। किन्तु जब कोई ऊँचा व्यक्ति गुणसम्पन्न होनेपर भी इस प्रकार मृत्युसे भयभीत हो तब तो विदेशी हमारी हँसी ही करेंगे। वे कहेंगे, 'एथेन्सके ऐसे लोग भी, जिन्हें उनके सद्गुणोंके कारण बड़ा मानकर बड़ा पद दिया जाता है, स्त्रियोंसे अधिक ऊँचे नहीं हैं, तब एथेन्सके अन्य लोग तो कितने