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१२९. पत्र: जनरल स्मट्सको[१]

जोहानिसबर्ग
मई १२, १९०८

प्रिय श्री स्मट्स,

श्री चैमनेके पाससे मुझे जो तार मिला है उसके सम्बन्धमें मैंने आपको एक टेलीफोन-सन्देश भेजा है। उस तारमें यह कहा गया है कि जो एशियाई समझौते के समय उपनिवेशसे बाहर थे और जो अब आ रहे हैं तथा जो इस मासको ९ तारीखके बाद यहाँ आये हैं, उन्हें अधिनियमके अन्तर्गत प्रार्थनापत्र देने चाहिए। जेलसे लिखे गये मेरे पत्रके असंदिग्ध वक्तव्यको देखते हुए[२] मुझे विश्वास है, कि आपका यह आशय कदापि नहीं है। इससे लगभग आतंक छा गया है। मैं आशा करता हूँ कि आवश्यक हिदायतें भेज दी जायेंगी और जो लोग अब आयें उनका स्वेच्छया पंजीयन स्वीकार कर लिया जायेगा।

आपका, आदि,
मो० क० गांधी

जनरल जे० सी० स्मट्स
कलोनियल ऑफिस
प्रिटोरिया

[ अंग्रेजीसे ] इंडिया आफिस ज्युडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स २८९६/०८; तथा टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४८११) भी।

१३०. पत्र: ए० कार्टराइटको

[ जोहानिसबर्ग ]
मई १४, १९०८

व्यक्तिगत
प्रिय श्री कार्टराइट,

शायद शान्तिके देवदूतका फिरसे आवाहन करना पड़ेगा। साथकी नकलें[३] अपनी कहानी आप कहेंगी। आप अभी कोई कार्रवाई करें, ऐसा मैं आवश्यक नहीं समझता। किन्तु जो स्थिति पैदा हो गई है उससे संदिग्ध विश्वासका खतरा जाहिर होता है। आप

 
  1. यह पत्र इंडियन ओपिनियनमें ४-७-१९०८ को प्रकाशित किया गया था और इसकी एक नकल रिचने उपनिवेश कार्यालयको अपने २७ जुलाई १९०८ को प्रेषित पत्रके साथ संलग्न की थी।
  2. जान पड़ता है कि 'देखते हुए' शब्द पत्रमें बाद में जोड़े गये थे; दफ्तरी प्रतिमें ये नहीं हैं।
  3. जनस्ल स्मट्सको भेजे गये और उनसे मिले पत्रोंकी नकलें।