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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो पत्र[१] लाये थे वह डेल्फीके[२] भविष्यवक्ताओंकी शैलीमें लिखा गया है। आपको याद होगा, मैंने अपने विचार उसी समय व्यक्त कर दिये थे, और आपसे कहा था कि मैं इस तरहके कागजपर केवल इसलिए हस्ताक्षर कर सकता हूँ कि आप उससे सम्बद्ध हैं।

हृदयसे आपका,

श्री ए० कार्टराइट
जोहानिसबर्ग

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४८१४) से।

१३१. पत्र: ई० एफ० सी० लेनको[३]

[ जोहानिसबर्ग ]
मई १४, १९०८

[ प्रिय सी० लेन ]

मुझे आपका इस मासको १३ तारीखका पत्र मिला, जिसके लिए मैं श्री स्मट्सको धन्यवाद देना चाहता हूँ। मेरी समझमें इस पत्रसे एक जबर्दस्त सवाल उठता है और एक बहुत-बड़ी गलतफहमी पैदा होती है। जब बातचीत चल रही थी उस समय मैं ऐसा समझौता स्वीकार करनेकी कल्पना भी नहीं कर सकता था, जिसका मतलब तीन मासके बाद प्रवेश करनेवाले एशियाइयोंके साथ भेदभावपूर्ण बरताव करना हो।[४] यदि इस प्रकारकी कोई बात हुई होती तो निश्चित रूपसे भारत-स्थित भारतीयोंको भी सूचना देनेके उपाय किये जाते और ऐसा केवल तार भेजकर कर सकते थे, ताकि वे लोग तीन मासके अन्दर ट्रान्सवाल वापस आ सकें। और ऐसा करनेपर भी, मेरी समझमें, भारतीयोंसे यह आशा करना सर्वथा न्यायसंगत न होता कि वे अपने कागजात बदलनेके लिए इस अवधिके अन्दर यहाँ आ जायेंगे। यह पाबन्दी केवल उन लोगोंपर लागू होती थी जो ट्रान्सवालके अधिवासी थे। श्री कार्टराइटके लाये हुए जिस पत्रपर मैंने और मेरे साथी कैदियोंने हस्ताक्षर किये थे उसे पढ़नेपर जनरल स्मट्स देखेंगे कि उसमें यह वाक्य तथा कुछ और शब्द मैंने जोड़े थे कि "इस प्रकारका पंजीयन उन लोगोंपर भी लागू होना चाहिए जो उपनिवेशसे बाहर होनेके कारण लौटकर आयें, और जिन्हें अन्य तरहसे प्रवेश करनेका अधिकार हो।" इस प्रकारके एशियाइयोंपर तीन मासकी आजमायशी अवधि

 
  1. देखिए "पत्र: "उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ ३९-४१।
  2. प्राचीन यूनानका एक स्थान; जहाँके प्रसिद्ध अपोलो मन्दिर के पुरोहित द्वैयर्थी भाषामें भविष्यवाणी किया करते थे।
  3. यह पत्इंर डियन ओपिनियनमें ४-७-१९०८ को प्रकाशित किया गया था और इसकी एक नकल रिचने अपने २७ जुलाई १९०८ के उपनिवेश कार्यालयको प्रेषित, पत्रके साथ संलग्न की थी।
  4. लेनके १३ मई १९०८ के पत्रमें जनरल स्मट्सने कहा था कि इस श्रेणीके लोगोंपर भी "उसी तरहका पंजीयन" लागू होगा जैसा तीन महीनेकी अवधिके भीतर स्वेच्छया पंजीयन करानेवाले ट्रान्सवाल्वासी एशियाइयों पर; अर्थात् कानूनके अन्तर्गत ९ मईके बाद उपनिवेश वापस आनेवाले लोगों से वैसा ही बर्ताव किया जायेगा जैसा टान्सवाल्के स्वेच्छ्या पंजीयनसे इनकार करनेवाले एशियाइयोंसे किया जायेगा। देखिए एस० एन० ४८१२।