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पत्र: ई० एफ० सी० लेनको

लागू करनेका इरादा कभी नहीं रहा; और न मैंने कभी यह सोचा कि दूसरा मार्ग स्वेच्छया पंजीयनको अनिश्चित काल तक के लिए खुला रखना है। और मैं आज भी इस तरहके किसी उपायका सुझाव नहीं देता। समझौतेका सारांश यह है कि भारतीय समाजका दायित्व पूरा हो जानेपर, और मेरा दावा है कि वह पूरा हो गया है, अधिनियमको रद कर देना चाहिए। अधिनियमके रद होनेतक आगे आनेवाले लोगोंका स्वेच्छ्या पंजीयन होता रहे। जैसा कि मेरे द्वारा प्रस्तुत मसविदे से मालूम होगा, भविष्यमें आनेवाले लोगोंकी शिनाख्तके लिए अनुबन्ध रख दिया गया है। इसलिए स्वेच्छया पंजीयनके अनिश्चित काल तक खुले रहने का कोई सवाल ही नहीं है।

निःसन्देह, यदि जनरल स्मट्स चाहते हैं कि अब पंजीयन नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे नया विधान पास होनेतक रोक देना चाहिए, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। लेकिन अब जो भारतीय प्रवेश करें उनपर अधिनियम लागू करनेसे मेरे कुछ देशवासियोंके मनमें जो शक अबतक छिपा हुआ है वह बढ़ जायेगा। अपने वचन का पालन करने और सरकारको सहायता करने में, जनरल जानते हैं कि, मैंने अपनी जान ही खो दी होती; और यह इसलिए हुआ कि, अपने कुछ देशवासियोंके मतानुसार, मैंने १० अँगुलियोंके निशान देनेके सिद्धान्तको स्वीकार कर उन देशवासियोंको बेच दिया है। यदि अधिनियमके अन्तर्गत नये आनेवाले लोगोंके प्रस्तावित पंजीयनपर जोर दिया गया तो न केवल सन्देहको प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि वह सन्देह उचित भी होगा। और मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि जो लोग मुझपर क्षुब्ध हों, उनको मेरा जीवन लेनेका अधिकार होगा। यदि मैंने कभी इस बातकी स्वीकृति दी हो कि अधिनियम नये आगन्तुकोंपर लागू हो तो, जो विश्वास मेरे देशवासियोंने मुझपर किया है, और जिस पदपर उन्होंने मुझे इतने लम्बे अर्से तक आसीन रहने दिया है, उसके लिए मुझे सर्वथा अयोग्य समझा जाना चाहिए। यदि अधिनियम बुरा था, और मैं सादर जोर देकर कहता हूँ कि वह था, तो वह सभीके लिए बुरा था। केवल वे लोग, जो अपनी धूर्तता या अपने दुराग्रहके कारण अपनी शिनाख्तके लिए सरकारको स्वेच्छया सुविधा न देते हों, उसे बुरा नहीं समझते थे। इसलिए मुझे विश्वास है कि जनरल स्मट्स इस मामलेपर पुनर्विचार करेंगे और मुझे अपने उस थोड़े-बहुत प्रभावको, जो मैं अपने देशके लोगोंपर रखता हूँ, वे अपनी इच्छित दिशामें उपयोग करनेके लिए नहीं कहेंगे। इतना ही नहीं, वे नये आगन्तुकोंका स्वेच्छया पंजीयन स्वीकार करके या यह सूचना देकर कि जबतक कि विधान पास नहीं होता तबतक उन्हें शिनाख्त देनेकी आवश्यकता नहीं है, मुझे अपना वचन पूरा करने में मदद पहुँचायेंगे---खासकर जब समझौतेके अन्तर्गत शिनाख्तका उद्देश्य उसी तरह पूरा हो जाता है।

चूँकि मामला अत्यन्त आवश्यक है, मैं निवेदन करता हूँ कि उत्तर तार द्वारा दिया जाये।

आपका सच्चा,

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-७-१९०८

इंडिया ऑफिस, ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स: २८९६/०८; तथा टाइप की हुई दफ्तरी प्रतिकी फोटो-नकल ( एस० एन० ४८१३ ) से।

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