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१३२. पत्र: मेघजीभाई गांधी और खुशालचन्द गांधीको

[ जोहानिसबर्ग ]
मई १४, १९०८

आदरणीय मेघजीभाई[१] और खुशालभाई,[२]

आपका पत्र मिला। जो चिट्ठी मैं इस पत्रके साथ रलियातबहनके[३] नाम भेज रहा हूँ, उसमें मैंने अपने कुछ विचार व्यक्त किये हैं। आप खुद उसे पढ़ देखें, उसपर मनन करें और उनको भी सुना दें। यदि वे करसनदासके[४] यहाँ हों तो उनके नाम लिखे गये पत्रको उनके यहाँ पहुँचा दें और कृपया मुझे लिखें कि [ इस विछोहके[५] बाद ] उनके मनकी क्या हालत हैं।

गोकलदास नहीं रहा। हम निस्सहाय हैं। [ हमारे ] सम्बन्धके कारण स्वभावतः ही इस पत्रको लिखते समय भी मुझे रुलाई छूट रही है। परन्तु जो विचार मेरे मनमें बहुत अर्सेसे चक्कर काट रहे हैं अब बहुत प्रबल हो गये हैं। मुझे दीख पड़ रहा है कि हम सब बड़े जंजालमें पड़े हैं। मैं देखता हूँ कि यह दशा जैसे हमारे कुटुम्बकी है, वैसे ही सारे देशकी है। विचार बहुत हैं, मगर यहाँ सिर्फ उन्हें ही रख रहा हूँ जो इस समय मनमें प्रधान रूपसे हैं।

गलत लिहाज या शर्मके कारण अथवा गलत मोहमें फँसकर हम अपने बालकोंके शादी-ब्याह करनेकी जल्दी मचाते हैं। इस बखेड़के पीछे सैकड़ों रुपये बरबाद करते हैं और फिर विधवाओंके मुख देखते रहते हैं। ब्याह करना ही नहीं, ऐसा तो मैं कैसे कहूँ? पर कुछ हद तो कायम करें? बालकोंकी शादी कराकर उन्हें हम दुखी करते हैं। वे सन्तान पैदा करके झंझट में पड़ जाते हैं। हमारे नियमके अनुसार स्त्रीसंग तो केवल प्रजोत्पत्तिके लिए है। इसके अलावा तो वह विषय है।

हम लोग इसमें से कुछ करते हों ऐसा देखनमें नहीं आता। यदि मेरा यह कथन सही है तो मानना पड़ेगा कि अपनी ही तरह [ छोटी उम्र में ] अपने बालकोंके शादी-ब्याह रचाकर हम उन्हें विषयी बना रहे हैं। इस प्रकार विषय-वृक्ष बढ़ता ही जाता है। इसे मैं तो धर्म नहीं कहता।

अधिक नहीं लिखूँगा। आपने वहाँके हालात लिख भेजे हैं, पर मैं और क्या उत्तर दूँ? अपने मनकी बात ही मैं लिख सकता हूँ। यद्यपि आप लोगोंसे छोटा हूँ फिर भी आपके द्वारा मैं अपने विचार सारे परिवारके सामने रख रहा हूँ। मेरी तो कुटुम्ब सेवा यही है।

 
  1. गांधीजी के फुफेरे भाई।
  2. गांधीजीके चचेरे भाई।
  3. गांधीजीकी बहन; इनके नाम लिखा उक्त पत्र उपलब्ध नहीं है।
  4. गांधीजीके भाई।
  5. उनके पुत्र गोकलदासकी मृत्युके कारण। गोकलदास कुछ दिनों तक गांधीजीके साथ दक्षिण आफ्रिकामें भी रहे थे। खण्ड १ भी देखिए।