पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/२६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाता है और उसके लिए नया परवाना जरूरी हो जाता है। यह विधेयक यदि कानून बन गया तो निश्चय ही भारतीय व्यापारी लगभग बरबाद हो जायेंगे। अपने नामपर परवाना रखनेवाले व्यक्तिका साझेदार साझेदारी छोड़ते ही खुद अपने नामपर परवाना लेनेका अधिकारी क्यों नहीं हो सकता? किन्तु इस विधेयकका परिणाम व्यापारकी मनाही करना होगा। इस विधेयकमें और भी अनेक ऐसी बातें हैं जिनसे नेटालमें भारतीयोंके सभ्य अस्तित्वपर आघात पहुँचेगा।

कुछ भारतीय, जो जन्मतः व्यापारी हैं, किसी अन्य काम या धन्धेको नहीं अपना सकते। और अब नेटाल ही उनका घर है। यदि उन्हें व्यापार नहीं करने दिया गया तो वे और क्या करेंगे? यदि इस विधेयकको पास करानेका हठ किया गया, तो इससे केवल धोखेबाजीको प्रोत्साहन मिलेगा। यह बिलकुल सच है कि वर्तमान परवाना-कानूनमें भारतीय व्यापारीकी स्थिति अपेक्षाकृत विशेष अच्छी नहीं है। वह हमेशा डाँवाडोल स्थितिमें रहा करता है; परन्तु इस कारण वर्तमान विधेयक न्याय-संगत नहीं ठहराया जा सकता। और फिर, मौजूदा परवाना कानूनकी स्थिति भी बहुत नाजुक हो गई है। अपनी पिछली नेटाल-यात्राके समय मैंने भारतीय व्यापारियोंको बहुत बेचैन पाया था और वे सोच रहे थे कि राहत पानेके लिए क्या किया जाये। हाल ही में विलायतसे प्राप्त तारसे भी प्रकट होता है कि उपनिवेश-कार्यालय नेटाल सरकारको अभीतक नेटालके व्यापारी परवाना कानूनको संशोधित या रद कर देनेकी बात समझा रहा है। सच तो यह है कि पहले विधेयकके अमलका पूरा परिणाम निकल चुकनेपर जो-कुछ अधिकार बच रहेंगे, यह दूसरा परवाना विधेयक उन सबका अपहरण कर डालेगा। इस प्रकार दूसरा अधिनियम भारतीय व्यापारियोंको दस वर्षमें आफ्रिका छोड़कर चले जानेकी सूचना है। यदि उस अवधिके बाद कुछ शेष रह गये तो उन्हें तीन वर्षोंके मुनाफेके आधारपर मुआवजा दे दिया जायेगा। यह हास्यास्पद है। नित्य बढ़नेवाले व्यापारको जब्त करने का यह मुआवजा पर्याप्त कैसे हो सकता है? भारतीय व्यापारी इस मुआवजेकी रकमपर मिलनेवाले ब्याजसे आजीवन गुजर-बसर नहीं कर सकते। अलबत्ता मैंने यह मान लिया है कि ऐसे भारतीय, इक्के-दुक्के लोगोंको छोड़कर, अपना कारोबार अन्यत्र न चलायेंगे।

मुझे मालूम है कि इस दूसरे विधेयककी तुलना इंग्लैंडके मद्य परवाना कानूनके साथ करके उसको उचित ठहरानेका प्रयत्न किया जा रहा है। परन्तु इन दोनोंकी तुलना हो ही नहीं सकती। उस मामलेमें शराबके व्यापारपर प्रतिबन्धका लगाया जाना समस्त जातिके नैतिक कल्याणके लिए आवश्यक है। भारतीय व्यापारियोंके सम्बन्धमें इस प्रकारकी कोई दलील पेश नहीं की जा सकती। उनमें चाहे जो दोष हो, कोई भी व्यक्ति उन्हें अन्य व्यापारियोंकी अपेक्षा अधिक बेईमान नहीं कह सका है। और भारतीय व्यापार अपने आपमें नुकसान पहुँचानेवाला नहीं है, जबकि शराबका व्यापार निःसन्देह वैसा है।

मैं ऐसी आशंका नहीं करता कि यह कानून पास हो जायेगा। लेकिन दक्षिण आफ्रिकाके उत्तरदायी मन्त्री इस प्रकारके कानूनको पास करा लेनेका विचार शान्त और निश्चिन्त भावसे कर सकते हैं, यह बात ही अत्यन्त शोचनीय है और साम्राज्य-संघ तथा साम्राज्य-सम्बन्धी राजनीतिज्ञताकी नींवको खोखली बनाये डाल रही है। इंग्लैंडके अनेक साम्राज्यवादी भारतको भी साम्राज्य-संघका अंग मानते हैं; और यह देखते हुए कि लॉर्ड कर्जनके कथनानुसार भारत साम्राज्यरूपी भवनका कलश है और भारत ही के कारण ब्रिटिश 'साम्राज्य' शब्द सम्भव हुआ