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१३५. नेटालके नये कानून

नेटालकी सरकारने व्यापारी-परवानेके सम्बन्धमें जो विधेयक प्रकाशित किये हैं उनपर हम ज्यों-ज्यों विचार करते हैं, वे हमें अधिकाधिक अन्यायपूर्ण दिखाई देते हैं। वे इतने अन्यायपूर्ण हैं कि दक्षिण आफ्रिकाके बहुत-से अखबारोंने उनकी निन्दा की है। नेटालमें 'मर्क्युरी' और 'टाइम्स ऑफ नेटाल'ने इन विधेयकोंका विरोध किया है। जोहानिसबर्गके पत्रोंमें 'स्टार' भी इनके विरुद्ध कड़े लेख लिखता रहता है। 'लीडर' ने भी विरुद्ध मत प्रकट किया है। केवल 'रैंड डेली मेल' इनके पक्षमें है।

इन विधेयकोंकी ऐसी निंदा की गई है; इसलिए भारतीयोंको मौन धारण करके न बैठ रहना चाहिए। यद्यपि बहुत-से पत्रोंने विधेयकोंकी निन्दा की है, फिर भी वे उनके उद्देश्यको पसन्द करते हैं। भारतीयोंके व्यापारको धक्का लगे तो इससे इन पत्रोंकी प्रसन्नता होगी। उनकी यह मान्यता है कि भारतीयोंकी उपस्थितिसे दक्षिण आफ्रिकाकी हानि होती है। वे केवल इतना कहते हैं कि ऐसे विधेयक ब्रिटिश राज्यमें पहले कभी नहीं बने और ब्रिटिश सरकार उन्हें मंजूरी नहीं देगी। इसका अर्थ यह है कि यदि ये गोरे लज्जाको त्याग सकें, अथवा इनको ब्रिटिश सरकारका भय न हो, तो ये सब भारतीयोंको पल-भरमें निकाल बाहर करनेके लिए तैयार ही बैठे हैं।

जबतक गोरे ऐसे विचार रखते हैं तबतक भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिकामें या किसी भी उपनिवेशमें सन्तोषसे नहीं बैठना चाहिए। अर्थात, यहाँके अखबार हमारे पक्षमें लिखते हैं, इससे हमें भुलावेमें नहीं आ जाना चाहिए। पिंजरेमें पड़ा सिंह बकरेका कुछ बिगाड़ नहीं सकता, इससे बकरा कुछ निर्भय होकर नहीं रह सकता। उसको तो सदा सिंहका भय रखकर सावधान होकर ही चलना पड़ेगा। ऐसी ही अवस्था हमारी भी है। यहाँके सामान्य गोरे हमें चाहते हों, ऐसा नहीं है। किन्तु जिन मामलोंमें उनका वश नहीं चलता उनमें वे हमें हानि नहीं पहुँचाते, बस। वे सिंहरूप हैं। इसे छोड़ कर वे बकरे बन जायें, यह सम्भव नहीं है। हम बकरारूप हैं; इसे छोड़कर हमें अब सिंहरूप धारण करना है। जब हम वह रूप धारण करेंगे तब अपने-आप परस्पर प्रीति होगी। दुनियाका--ईश्वरीय नहीं--नियम यह है कि समान लोगोंमें ही प्रेम अथवा मैत्रीभाव देखा जाता है। राजा राजाओंके मित्र होते हैं। राजा और प्रजाके बीच तो केवल कृपा ही हो सकती है। इसीलिए कुछ लोग प्रजा-सत्तात्मक राज्य चाहते हैं। स्वामी और सेवकके बीच मैत्री नहीं होती। यह हम प्रत्येक स्थितिमें देखते हैं। जब इसके विरुद्ध बात दिखाई दे--एक समान न होनेपर भी प्रीति दिखाई दे--तब हमें समझना चाहिए कि प्रीति करनेवाला स्वामी या तो स्वार्थी है या साधु है। गोरे हमें अपनी अधीनस्थ जाति मानते हैं। जबतक उनका यह रुख है, कभी आपसमें प्रेम होनेवाला नहीं है। और जबतक प्रेम नहीं होता तबतक भारतीय लोगोंका सन्ताप बना ही रहेगा। इसलिए भारतीय सिंहरूप धारण करनेपर ही अपने अधिकारोंका उपयोग कर सकते हैं।

नेटालके विधेयकोंकी खूबी यह है कि वे चीनियोंपर लागू नहीं होते। काफिरोंपर तो लागू हों ही कैसे? इसलिए यदि वे विधेयक स्वीकृत हो जायें तो भारतीय सबसे गये-बीते साबित होंगे। नेटाल-सरकार द्वारा इन विधेयकोंको प्रस्तुत करनेका उद्देश्य हम यह मानते