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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रखनी चाहिए। यदि कर्मचारी कभी समझौतेके विरुद्ध गये तो उसका उपाय है। वे विरुद्ध जाते हैं, इसलिए समझौतेको दोष देना ठीक नहीं है।

"भारतीयोंको निकालो"

आज समस्त दक्षिण आफ्रिका में "भारतीयोंको निकालो" का शोर मचता रहता है। जिन कैप्टन कुकने कुछ दिनों पहले प्रगतिवादी (प्रोग्रेसिव) सभामें भारतीयोंको बाहर निकालनेके बारेमें एक प्रस्ताव पेश किया था और जिनका प्रस्ताव रद्द हो गया था, उन्होंने अब 'स्टार' में पत्र लिखा है। पत्रमें कहा गया है कि नेटालमें ऐसा कानून बनानेकी जो कोशिश की जा रही है, वह निरर्थक है। और इसलिए कैप्टन कुक कहते हैं कि कानून बनानेके बदले किसी प्रकार भारतीयोंके लिए एक ऐसा देश खोज निकाला जाये जो गोरोंके रहने योग्य न हो। कैप्टन कुक साहब कहते हैं कि भारतीय उसमें भेज दिये जायें और यह भी प्रकट करते हैं कि ऐसा करना न्याय-संगत है। इस विचारका 'स्टार'ने भी कुछ समर्थन किया है; जबकि वही अखबार नेटालके कानूनके विरुद्ध बहुत सख्त टिप्पणियाँ लिखा करता है।[१]

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-५-१९०८

१३७. सर्वोदय [१]

प्रस्तावना

पश्चिमी देशोंमें साधारण तौरपर यह माना जाता है कि मनुष्यका काम बहुसंख्यक लोगोंके सुखकी वृद्धि--उदय--करना है।[२] सुख अर्थात् केवल शारीरिक सुख, रुपये-पैसेका सुख---ऐसा अर्थ किया जाता है। इस प्रकारके सुखको प्राप्त करनेमें नीतिके नियमोंका उल्लंघन होता है, इसकी खास परवाह नहीं की जाती। और चूँकि उद्देश्य अधिकांश लोगोंके सुखको बनाये रखनेका है, इसलिए थोड़े लोगोंको कष्ट पहुँचाकर ज्यादा लोगोंको यदि सुखी किया जा सकता हो तो ऐसा करनेमें पश्चिमके लोग दोष नहीं देखते। इसे दोषपूर्ण न माननेका परिणाम सभी पाश्चात्य देशोंमें दिखाई देता है।

अधिक लोगोंके शारीरिक और आर्थिक सुखकी ही खोज करते रहना ईश्वरीय नियमके अनुकूल नहीं है; और पश्चिमके कुछ समझदार व्यक्तियोंका कहना है कि यदि केवल उसीकी खोज की जाती रहे और नीतिके नियमोंका उल्लंघन होता हो तो वह ईश्वरीय नियमके विपरीत है। इनमें स्वर्गीय जॉन रस्किन[३] मुख्य था। वह अंग्रेज था और बड़ा विद्वान था। उसने

 
  1. देखिए "लॉर्ड सेल्बोर्नके विचार", पृष्ठ १६२-६३ और "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ २०९-१०।
  2. संकेत बेन्थमके अधिकतम संख्याका अधिकतम हित' प्रतिपादित करनेवाले सिद्धान्तकी ओर है। गांधीजी नैतिक कारणोंसे हमेशा इस सिद्धान्तके विरोधी रहे। देखिए खण्ड ४, पृष्ठ २५६। रस्किनने भी अर्थ-व्यवस्थाका ऐसा यान्त्रिक 'शास्त्र' बनानेकी आलोचना की है, जिसमें समाजकी "पारस्परिक भावना" का खयाल बिलकुल न हो। रस्किनका तर्क यह था कि सबसे बड़ी कला या सबसे बड़ा विज्ञान वह है जिससे "अधिकतम संख्यामें महत्तम विचारों" का उदय हो।
  3. (१८१९-१९००); स्कॉटलैंडके रहनेवाले थे; गांधीजी अपने जीवनमें जिन तीन व्यक्तियोंके विचारोंसे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, रस्किन उनमेंसे एक थे। देखिए आत्मकथा, भाग ४, अध्याय २८।