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सर्वोदय [१]

कारीगरी, कला, चित्रकारी इत्यादि विषयोंपर अनेक और बहुत सुन्दर पुस्तकोंकी रचना की है। नीतिके विषयपर भी उसने बहुत कुछ लिखा है। उन पुस्तकोंमें एक छोटी-सी पुस्तिका[१] है जिसे उसने अपनी समस्त कृतियोंमें उत्तम माना है। जहाँ-जहाँ अंग्रेजी बोली जाती है वहाँ-वहाँ यह पुस्तक खूब पढ़ी जाती है। उसने इस पुस्तिकामें उपर्युक्त विचारोंका भली प्रकार खण्डन किया है और यह दिखा दिया है कि नीतिके नियमोंका अनुसरण करनेमें जन-साधारणकी भारी बेहतरी है।

आजकल भारतमें हम लोग पश्चिमके लोगोंकी नकल खूब कर रहे हैं। यों कुछ विषयोंमें अनुकरणकी आवश्यकता भी हम मानते हैं, परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि पश्चिमके आचार-विचार खराब हैं। जो खराब है उससे दूर रहने की आवश्यकता सभी स्वीकार करेंगे।

दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी हालत बहुत दर्दनाक है। हम धनोपार्जनके हेतु दूर-दूरके देशोंकी यात्रा करते हैं। और उसकी धुनमें नीति और भगवानको भूल जाते हैं--स्वार्थमें फँस जाते हैं। और परिणाम यह होता है कि परदेश गमनसे लाभके बजाय हानि अधिक होती है या परदेश जानेका पूरा लाभ नहीं मिलता। सभी धर्मोमें नीतिका स्थान तो है ही लेकिन धर्मको बात छोड़ दें और सामान्य बुद्धिसे सोचें तो भी नीतिका आचरण आवश्यक है। उसमें सुख है, ऐसा जॉन रस्किनने बतलाया है। उसने पश्चिमके लोगोंकी आँखें खोल दी हैं और आज बहुतेरे गोरे रस्किनकी शिक्षाका अनुसरण करते हैं। इस हेतुसे कि उसके विचार भारतीय जनताके लिए भी उपयोगी हों, हमने उपर्युक्त पुस्तिका [ अन टु दिस लास्ट ] का सारांश अंग्रेजी न जाननेवाले भारतीयोंको समझमें आ सकने योग्य भाषामें देनेका निश्चय किया है।

सुकरातने मनुष्यको क्या करना चाहिए, इसका कुछ दर्शन कराया है। उसने जैसा कहा वैसा ही किया। कहा जा सकता है कि रस्किनके विचार उसके विचारोंका विस्तार हैं। सुकरातके विचारोंके अनुसार चलने की इच्छा रखनेवालोंको विभिन्न धन्धोंमें किस प्रकार बरतना चाहिए, इस बातको रस्किनने स्पष्ट रूपसे समझाया है। उसके लेखोंका जो सार हम दे रहे हैं वह अनुवाद नहीं है। अनुवाद देनेसे, सम्भव है, बाइबिल [ ईसाइयोंका धर्म-ग्रन्थ ] इत्यादिमें से उद्धृत किये हुए दृष्टान्त पाठक न समझ पायें। इसलिए हमने रस्किनके लेखोंका सार ही दिया है। इस पुस्तिकाके नामका[२] शब्दानुवाद भी हमने नहीं किया क्योंकि जिसने अंग्रेजीमें बाइबिल पढ़ा हो वहीं उसे समझ सकता है। परन्तु पुस्तक लिखनेका हेतु सबका कल्याण--सर्वका उदय--(केवल ज्यादा लोगोंका नहीं ) होनेके कारण, हमने इस लेखमालाका नाम 'सर्वोदय' रखा है।

सत्यकी जड़ें [३]

लोग अनेक भ्रमोंके शिकार हैं; परन्तु पारस्परिक भावनाके असरका विचार किये बिना---मानो वे यन्त्रवत् काम करनेवाले ही हों---उनके आचरणके लिए कायदे-कानून बनाने-जैसी बड़ी भूल और कोई दिखलाई नहीं पड़ती। और ऐसी भूल हमारे लिए लांछनकारी

 
  1. पुस्तिकाका मूल अंग्रेजी नाम अन टु दिस लास्ट है।
  2. अन टु दिस लास्ट, मुहावरेके लिए देखिए सैंट मैथ्यू पथ १४, परिच्छेद २०।
  3. गांधीजीका मतलब जिसे अंग्रेजीमें 'पोलिटिकल इकॉनामी' कहा जाता है उसके नियमोंसे है।