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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मानता हूँ कि वे न्याय और समानताके व्यवहारके अधिकारी हैं; उन्हें पक्षपात नहीं चाहिए। जैसे ही उन्हें न्याय मिला, कठिनाइयाँ दूर हो जायेंगी। इसलिए यद्यपि एशियाई और रंगदार कौमोंसे किसीको डर नहीं हो सकता तथापि कमसे-कम कुछ उपनिवेशोंमें एशियाइयोंको सचमुच डरावना बना दिया गया है। हमें बताया गया है कि मॉरिशस और नेटालके उदाहरणको देखकर समस्त संसारकी गोरी कौमें डर गई हैं। मैं नहीं जानता कि ये देश ऐसे डरावने हैं या नहीं, परन्तु मैं यह तो मानता ही हूँ कि जो कुछ नेटालमें हुआ वह अगर वहाँ न हुआ होता तो आज नेटालकी शक्ल दूसरी ही होती। वह शक्ल अच्छी होती या बुरी, इसकी चर्चा हम अभी नहीं कर रहे हैं। परन्तु अगर ये देश बरबाद हो गये हैं, तो इनको गोरोंने जानबूझकर बरबाद किया है-- और खासकर उन थोड़े-से गोरोंने जो जल्दीसे-जल्दी धनवान बन जाना चाहते थे। इसके बजाय यदि वे जरा धीरजसे काम लेते और उचित अवसरकी राह देखते तो ऐसा कुछ होने की जरूरत नहीं थी। उन्होंने भारतसे गिरमिटिया मजदूर लानेमें कोई आगा-पीछा नहीं किया और लगभग गुलामोंकी तरह उनसे काम लिया। इसीकी कीमत बादकी पीढ़ियोंको चुकानी पड़ रही है। इसलिए अगर नेटाल और मॉरिशसको कुछ सहना पड़ा है तो उसका कारण एशियाई नहीं हैं, बल्कि मजदूरीकी वह प्रथा है जिसमें एशियाई शामिल हो गये थे। यदि गोरी कौमोंमें से भी गिरमिटिया मजदूर लाये जाते तो भी उसका परिणाम यही होता। स्वतन्त्र भारतीयोंकी आबादीसे उपनिवेशोंको कभी कोई हानि पहुँचनेकी आशंका नहीं है।

परन्तु मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि ब्रिटिश भारतीयोंके बारेमें की जानेवाली कुछ शिकायतें बुद्धिको जँचनेवाली हैं। तथापि मैं यह निवेदन करने का साहस करता हूँ कि इन शिकायतोंका कोई ठोस आधार नहीं है। एक शिकायत यह है कि वे गन्दे झोपड़ोंमें रहते हैं। हाँ, उनमें से कुछ जरूर रहते हैं। दूसरे, कहा जाता है कि उनका रहन-सहन बड़ा सस्ता है। परन्तु अगर आप इन शिकायतोंकी गहराईमें जायें तो मेरा खयाल है कि आप इसी नतीजेपर पहुँचेंगे कि इन्हें नगर-पालिकाओंके नियमोंके मातहत बड़ी आसानीसे और बहुत अच्छी तरह दूर किया जा सकता है। लन्दन शहरके पूर्वमें रहनेवालोंके खिलाफ पश्चिमी छोरपर रहनेवालोंको बहुत-सी शिकायतें हैं। परन्तु किसीने यह नहीं सुझाया है कि पूर्वी छोरके लोगोंको वहाँ से भगा दिया जाये। बुराईके कारणोंको हटा दीजिए तो पूर्वी छोरके मनुष्य भी उतने ही अच्छे बन जायेंगे जितने कि पश्चिमी छोरके लोग हैं। इसी प्रकार जिन परिस्थितियोंमें ब्रिटिश भारतीयोंको रहना पड़ रहा है उनको बदल दीजिए। आज वे जमीनका एक टुकड़ा भी नहीं रख सकते जिसे वे अपना कह सकें। दक्षिण आफ्रिकामें ईश्वरकी बनाई इस जमीन-पर वे रह नहीं सकते, घूम नहीं सकते, और किसी भी प्रकार स्वतन्त्र, स्वाभिमानी और मनुष्यका-सा जीवन नहीं बिता सकते। यह स्थिति दूर कर दीजिए तो वे अपने-आप अनुभव करने लगेंगे कि रोममें तो रोमके निवासियोंकी भाँति ही रहना चाहिए। और फिर, उपनिवेशके गोरे निवासी जिस किसी उचित और जिम्मेवारीके व्यवहारकी अपेक्षा करेंगे उसे वे पूरा करेंगे। परन्तु मैं आपसे कहूँगा कि आप उनके साथ जरा धीरजसे काम लीजिए, जैसे कि आप अपने किसी साथीसे व्यवहार करते समय लेते हैं। उनके साथ आप एक सच्चे, चेतन मनुष्यके समान व्यवहार कीजिए, और फिर भारतीय प्रश्न जैसा कोई प्रश्न ही नहीं रह जायेगा। कहीं यह मत सोच लीजिए कि मैं भारतीयोंके अबाधित प्रवेशके लिए कह