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१३९. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

[मई १६, १९०८]

यह दगा तो नहीं है?

इस बारकी चिट्ठी बहुत ध्यान देने योग्य है। मैंने पिछले सप्ताह खबर दी थी कि यहाँकी सरकार अब वापस आनेवाले भारतीयोंका पंजीयन खूनी कानूनके[१] मुताबिक ही करना चाहती है। यह समाचार देते हुए मैंने सोचा था कि सरकार अपनी बात जल्दी वापस ले लेगी और अनुमतिपत्र अधिकारी भी ९ मईके बाद दाखिल होनेवाले भारतीयोंको स्वेच्छया पंजीयन की सुविधा दे देंगे। जान पड़ता है, मेरा अनुमान ठीक नहीं था। श्री गांधी तथा जनरल स्मट्सके बीच जो पत्र-व्यवहार हुआ है उसके अन्तमें जनरल स्मट्स कहते हैं कि ९ मईके बाद आनेवाले भारतीयोंपर तो खूनी कानून लागू होगा ही।

यह खबर, कि खूनी कानून लागू करनेका इरादा है, श्री हाजी हबीबने प्रिटोरियासे भेजी थी। खबर मिलते ही तार भेजा गया। उसका निम्नलिखित उत्तर मिला:

जनरल स्मट्सका सन्देश

सरकार आपको तारसे खबर देती है कि जो तीन महीनेके भीतर ट्रान्सवालके बाहर से आये, उन्हें स्वेच्छया पंजीयन कराने दिया गया है। अर्थात् समझौतेको शर्तका पालन हुआ है। जो लोग तीन महीनेकी इस अवधिके बाद आयेंगे उन्हें कानूनके मुताबिक अनिवार्य पंजीयन कराना पड़ेगा।[२]

श्री गांधीका पत्र

इसपर श्री गांधीने जनरल स्मट्सको निम्नानुसार पत्र[३] लिखा:

श्री चैमनेका तार[४] मिलनेपर मैंने आपको तार किया है। मुझे विश्वास है कि मेरे जेलसे लिखे पत्रके[५] आधारपर आप समझ सकेंगे कि जो बाहरसे आता है और जिसे आनेका हक है उसे चाहे जब स्वेच्छया पंजीयन प्राप्त हो सकता है।

श्री चैमनेने जो स्वेच्छया पंजीयन नहीं कराने दिया उसको लेकर लोगोंमें घबराहट पैदा हो गई है। मुझे आशा है कि आप तुरन्त योग्य आज्ञा निकालेंगे और बाहरसे आनेवालोंका स्वेच्छया पंजीयन प्रारम्भ करेंगे।

 
  1. देखिए "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ २३१-३२।
  2. यह उत्तर एशियाई पंजीयकके पाससे आया था।
  3. सम्पूर्ण पाठके लिए देखिए "पत्र: श्री स्मट्सको", पृष्ठ २२३।
  4. मूल अंग्रेजीमें "टेलीफोन" है।
  5. देखिए "पत्र: उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ ३९-४१।