पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/२७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि समझौतेमें एक पक्ष दगा करता है तो फिर संघर्ष करना पड़ता है। इस तरह भारतीय समाजको फिर लड़ना पड़ेगा। फर्क केवल इतना ही है कि हमें तीन महीने का समय मिल गया है और अब हम अधिक शक्तिसे, अधिक अच्छे तरीकेसे लड़ सकेंगे। मेरी यही मान्यता है। जिस सत्याग्रहसे समझौता हुआ, वही सत्याग्रह समझौतेको पार भी उतार सकेगा।

सत्याग्रहकी कसौटी

यदि यह संघर्ष फिर शुरू हुआ, तो उसमें सत्याग्रहकी कसौटी होगी। वह और भी अधिक चमकेगा और यदि भारतीय समाज दृढ़ रहा, तो ऐसा रंग जमेगा कि दुनिया देखेगी।

जरूरत कायरोंकी नहीं, शूरोंकी है। जान हथेलीपर रखकर लड़ना है। अपना लाभ न देखकर सार्वजनिक लाभ ही देखना चाहिए। हम क्या थे, क्या लाये थे, और क्या ले जायेंगे, ऐसा विचार कर सब-कुछ सत्यके चरणोंमें अर्पित करके म्यानमें रखी हुई तलवारें फिर निकालनी पड़ें, तो मैं बेधड़क होकर कहूँगा कि निकाली जायें। हमें ऐसा सोचना है, समझौते के दोष नहीं ढूँढ़ने हैं। लोग जब किये हुए करारसे मुकर जाते हैं, तब आपसमें झगड़ा खड़ा हो जाता है, ऐसा ही यहाँ भी समझना चाहिए। धोखेके खिलाफ कोई जमानत नहीं दी जा सकती। लोग धोखा देते हैं, इसलिए विश्वास ही न किया जाये, यह भी नहीं कहा जा सकता।

इसके सिवा जब जेलके दरवाजे खोले गये, उस समय जो-कुछ हुआ, उससे कुछ अधिक होनेकी सम्भावना भी नहीं थी।

यह सारा विचार मैं 'इंडियन ओपिनियन' के पाठकोंके समक्ष इसलिए प्रस्तुत करता हूँ कि सब सावधान हो जायें। कैसी-कैसी मुश्किलें आती हैं, यह भी जान लें और स्वेच्छया पंजीयन करानेका क्या मूल्य है, यह भी समझें। मैं सोचता हूँ कि फिर संघर्ष शुरू नहीं करना पड़ेगा। जनरल स्मट्स अपनी भूल सुधार लेंगे और कानून रद हो जायेगा। किन्तु यदि कानून रद न किया गया, तो हमें तैयार रहना है। ध्यान रहे कि इसकी पहली चेतावनी हमें जनरल स्मट्ससे ही मिली है।

ऊपरका अंश मैंने शनिवारको लिखा था। अगले बुधवार तक जो-कुछ घटेगा मैं उसे भी इसी संवादपत्रमें दे सकनेकी आशा करता हूँ।

[ मई २०, १९०८ के पूर्व ]

दुःखकी बात

दुःखकी बात इतनी ही है कि देशसे कुछ भारतीय अभी-अभी आये हैं। उन्होंने यह कानून स्वीकार कर लिया है और उसके मुताबिक पंजीयन करा लिया है। ऐसी उतावली नहीं करनी चाहिए थी। यह बड़ी निराशाकी बात है कि इतना जबरदस्त संघर्ष करनेके बाद भी ऐसे भारतीय पड़े हैं जो अपना कर्त्तव्य नहीं समझ पाते।

चेतावनी

किन्तु मुझे आशा है कि अब कोई भी भारतीय पंजीयन कार्यालयमें जाकर कानूनके मुताबिक पंजीयन नहीं करायेगा।