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पत्र: एशियाई पंजीयकको

विरोधमें संघर्ष करनेका साहस रखना चाहिए। और साहस तो निर्भयतामें ही है। हर बातमें निर्भय होना चाहिए। हमें शरीर, धन अथवा कीर्तिकी हानिसे भयभीत नहीं होना चाहिए। सब चला जाये, किन्तु सत्य न जाये । ऐसा होना ही निर्भय होना है।

बहुत-से पठान मार-पीटको ठीक नहीं समझते। मैं इस बातको अच्छी तरह जानता हूँ। किन्तु वे सामने नहीं आते, क्योंकि वे मारके डरसे दबे बैठे हैं। यदि ऐसे पठान मेरा यह लेख पढ़ें तो मैं उन्हें सलाह देता हूँ कि वे भी खरी बहादुरी दिखायें और यह जाहिर कर दें कि वे इस बातको पसन्द नहीं करते।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २३-५-१९०८

१४०. पत्र: एशियाई पंजीयकको

[ जोहानिसबर्ग ]
मई २१, १९०८

एशियाई पंजीयक
प्रिटोरिया
महोदय,

बाबत: मुहम्मद बालिम--ई/७५१२

ये कागजात मेरे पास श्री मुहम्मद बालिमने भेजे हैं। देखता हूँ कि आपने १९०७ के कानून २ और १५ की बिनापर मामलेपर विचार करने से इनकार कर दिया है। लेकिन क्या मैं आपके समक्ष इस मामलेकी विशेष परिस्थिति रखनेका साहस कर सकता हूँ। श्री मुहम्मद बालिम लगभग १९०५ से ही उपनिवेशमें प्रवेशकी आज्ञा पानेकी कोशिश करते आ रहे हैं। १८८५ के कानून ३ में संशोधन होनेके पहले जिन बहुत ही थोड़े भारतीयोंने अपने निवासका २५ पौंड शुल्क चुकाया था, वे उनमें से एक हैं। ट्रान्सवालमें उन्हें बहुत लोग जानते हैं और वे अनेक प्रतिष्ठित व्यक्तियोंकी साक्षी दे सकते हैं। इस परिस्थितिमें, मैं आपसे इस अत्यन्त विशिष्ट मामले पर पुनर्विचार करनेकी प्रार्थना करता हूँ।

आपका आज्ञाकारी सेवक,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५५६१) से।