पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/२८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



४१. पत्र: जनरल स्मट्सको

[ जोहानिसबर्ग ]
मई २१, १९०८

प्रिय श्री स्मट्स,

मुझे मालूम हुआ है कि आप शनिवारको केप टाउन जा रहे हैं। जहाँतक भारतीय समाजका सम्बन्ध है, मैं समझता हूँ, आप स्थितिकी गम्भीरताका अनुभव नहीं करते हैं। आपके इस निर्णयने[१] कि इस मासकी ९ तारीखके वाद प्रामाणिक अनुमतिपत्रोंके साथ उपनिवेशमें प्रवेश करनेवाले भारतीयोंका पंजीयन समझौते के अन्तर्गत नहीं होगा, भारतीयोंको विक्षुब्ध कर दिया है। मैं मानता हूँ, आप सुन चुके हैं कि संघके अध्यक्षपर पहले ही आक्रमण हो चुका है।[२] निकट भविष्यमें और भी बहुतसे लोगोंपर आक्रमणकी सम्भावना है। मुझे प्रतिदिन रोष-भरे पत्र मिलते हैं, जिनमें लिखा रहता है कि मैंने समझौतेके सम्बन्धमें लोगोंको पूरी तरह गुमराह किया है और कानून किसी तरह भी रद नहीं होगा। क्या उन लोगोंके लिए, जिन्होंने सरकारको सहायता पहुँचाई है, मैं आपसे यह साधारण-सी बात करनेके लिए नहीं कह सकता कि आप तुरन्त घोषणा कर दें कि अधिनियम रद कर दिया जायेगा तथा नये आगन्तुक स्वेच्छया पंजीयन करा सकेंगे?[३]

पठान समाजका सर्वाधिक उग्र स्वभाववाला सदस्य, जो कि इस कार्यवाहीमें पीछे रहा है, लेकिन जिसने आक्रमणोंमें सक्रिय भाग लिया है, आज गिरफ्तार कर लिया गया है। उसपर यह अपराध लगाया गया है कि वह लोगोंको मारपीटके लिए उकसा रहा था। मेरा निश्चित विचार है कि यदि तनिक भी सम्भव हो तो इस व्यक्तिको निष्कासित कर देना चाहिए।[४] मेरे विचारमें वह न्यूनाधिक रूपमें विक्षिप्त है और बहुत-से असन्तुष्ट भारतीय उसे घेरे रहते हैं। अधिनियमको रद कर देनेकी घोषणामें तथा स्वेच्छया पंजीयनको स्वीकार करनेके निर्णयमें देरी करनेसे इन लोगोंके हाथ मजबूत ही हुए हैं। यदि आप अधिनियमके बारेमें विश्वास दिला दें, नये आगन्तुकोंका स्वेच्छया पंजीयन स्वीकार कर लें तथा उक्त कट्टर व्यक्तिको या तो निष्कासित कर दें या उसे प्रवासी पंजीयन अधिनियमके अन्तर्गत निषिद्ध प्रवासी घोषित कर दें तो इससे आप शिष्ट भारतीयोंके मनकी व्यग्रता कम करेंगे। मेरा खयाल है, उक्त व्यक्ति के पास कोई भी कागजपत्र नहीं है।

 
  1. लेनने कहा था कि गांधीजीकी १४ मईके पत्रमें की गई प्रार्थनापर पूरा विचार करनेके बाद, स्मट्स उसको स्वीकार नहीं कर सके। "... तीन महीने की जो मीयाद स्वेच्छया पंजीयनके लिए दी गई थी वह गुजर गई। उसके बाद प्रार्थनापत्र अधिनियमके अन्तर्गत ही लिये जा सकते हैं।" देखिए, एस० एन० ४८१५।
  2. देखिए "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ २४३ और "ईसप मियाँ", पृष्ठ २४९।
  3. जनरल स्मट्सने इसे स्वीकार नहीं किया। देखिए एस० एन० ४८१७।
  4. लेनने अपने उत्तरमें (एस० एन० ४८१७) कहा था, "...श्री चैमनेने आपको जो कारण बताये हैं; उन कारणोंसे, उसके साथ आपके सुझावके अनुसार व्यवहार करना सम्भव नहीं है।" उन्होंने यह भी कहा था कि जनरल स्मट्स हृदयसे यह आशा करते हैं कि यदि गांधीजीको अपने लिए खतरा है तो उन्हें तुरन्त पुलिसका संरक्षण प्राप्त करना चाहिए।