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पत्र: मगनलाल गांधीको

मैंने इस पत्रको अत्यन्त व्यक्तिगत बनाकर इसमें अत्यन्त स्पष्टवादितासे काम लेनेका साहस किया है। क्या मैं आपसे प्रार्थना करूँ कि आप भी उसी स्पष्टवादितासे काम लें? अबतक मैं स्वभावतः श्री कार्टराइटसे, जिन्होंने एक मध्यस्थका काम किया है और जो सन्देशोंको इधरसे उधर भेजते रहे हैं, बात करता रहा हूँ; किन्तु स्थितिकी गम्भीरताका तकाजा है कि मैं यह अत्यन्त व्यक्तिगत अपील सीधी आपसे करूँ।

आपका, आदि,

श्री जे० सी० स्मट्स
उपनिवेश सचिव
प्रिटोरिया

हस्तलिखित दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ४८१६) से।

१४२. पत्र: मगनलाल गांधीको

[ जोहानिसबर्ग ]
मई २१, १९०८

चि० मगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। मेरे विषयमें चिन्ता करनेकी जरूरत नहीं है। मेरा खयाल है कि मुझे अपनी बलि देनी ही होगी। (जनरल) स्मट्स अन्त तक दगा दे सकेंगे, ऐसा मैं नहीं मानता। जो लोग अधीर होकर मेरी जान लेनेके लिए व्याकुल हो रहे हैं, उन्हें इससे अवसर मिल जाता है। यदि ऐसा ही हो जाये तो सन्तोष मानना चाहिए। मैं जिस बातको कल्याणकारी मानता हूँ यदि उसके लिए जान देनी पड़े तो उससे अच्छी मौत कौन-सी हो सकती है?

यदि गोकुलदासकी मौत उचित थी तो फिर मरनेमें उदासीकी क्या बात है? यह संसार नश्वर है। यदि मेरा शरीर छूट जाये तो इसमें आत्मीयोंके चिन्ता करनेकी बात किस तरह शोभनीय है? मरणपर्यन्त मेरे हाथसे कोई अयोग्य काम न बन पड़े बस इतनी इच्छा है। गलतीसे भी वैसा न हो जाये, इसकी सावधानी रखनी चाहिए। मोक्ष पा सकनेकी मेरी स्थिति अभी तो नहीं है; किन्तु मेरा विश्वास है कि आज मेरे विचार जिस पथपर बढ़ रहे हैं यदि उसपर आरूढ़ रहकर मैं शरीर छोड़ूँ तो मेरा पुनर्जन्म ऐसा होगा कि उसके बाद मुझे सद्यःमोक्ष मिल जायेगा।

मोहनदासके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]

महात्मा गांधीना पत्रों, सम्पादक, डाह्याभाई मनोरलाल पटेल, सेवक कार्यालय, अहमदाबाद; १९२१।