पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/२८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



१४४. ईसप मियाँ

श्री ईसप मियाँपर जो क्रूर हमला हुआ है उससे समस्त आफ्रिकाका भारतीय समाज थर्रा जायेगा। इस हमलेका कारण ढूँढ़ने बैठें तो कुछ भी नहीं है। मारपीट करनेवाला व्यक्ति स्वयं तो बिलकुल अपढ़ जान पड़ता है। इस मारपीटसे भारतीय समाजको लांछन लगता है। उससे प्रकट होता है कि हम राजनीति भली-भाँति नहीं समझते। मारपीटके जरिये वैर निकालना तो जंगलीपनका सूचक है।

हम श्री ईसप मियाँके प्रति सहानुभूति प्रकट करते हैं। उन्होंने जातिकी बहुत बड़ी सेवा की है; अब मारको सहन करके उन्होंने अपनी उस सेवामें वृद्धि की है। इस घटनासे आश्चर्य नहीं होता; हम अभी सीख रहे हैं। जातिकी खातिर---सत्यकी खातिर---मार खाना सीखनेकी आवश्यकता है। उसके लिए मरना भी आना चाहिए। समाजमें हत्याएँ भी होंगी। यह सब हुए बिना उसमें तेज उत्पन्न न होगा। उसके बिना समाजका उत्थान न होगा। रक्तकी गाँठ मजबूत होती है। सत्यकी खातिर मरनेवाला व्यक्ति मरते हुए भी सेवा करना नहीं छोड़ता; हमारा दृढ़ विश्वास है कि उसकी आत्मा मृत्युके बाद भी सेवा करती है। इन विचारोंका अनुसरण करते हुए हम श्री ईसप मियाँको उनकी वीरतापर बधाई देते हैं।

पठानोंमें अभीतक नासमझी चल रही है। हम उनको बताते हैं कि अब तो उन्होंने अति कर दी है। यह नासमझी अधिक न चले तो अच्छा।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २३-५-१९०८

१४५. सर्वोदय [२]

सत्यकी जड़ें

लौकिक शास्त्रके नियम गलत हैं ऐसा कहने का कोई कारण नहीं है [ बशर्ते कि उसके आधारभूत सिद्धान्त मान लिये जायें ]। व्यायाम-शिक्षक यदि सोचे कि मनुष्यके शरीरमें केवल मांस-ही-मांस है, अस्थि-पंजर नहीं है और फिर नियम बनाये तो उसके नियम सही भले ही हों, किन्तु वे अस्थि-पंजरवाले मनुष्यपर लागू नहीं होंगे। उसी प्रकार लौकिक शास्त्रके नियम सही होनेपर भी, भावनाशील व्यक्तिपर लागू नहीं हो सकते। कोई व्यायाम-विशारद यदि ऐसा कहे कि मनुष्यके मांसको अलग निकालकर उसकी गेंद बनाई जाये, उसको लम्बा करके उसकी डोरी बनाई जाये और फिर ऐसा भी कहे कि (अब) यदि उसमें अस्थि-पंजर डाला जाये तो कितनी अड़चन पैदा होगी! हम ऐसा कहनेवालेको मूर्ख कहेंगे, क्योंकि अस्थि-पंजरको मांससे अलग करके व्यायामके नियम नहीं गढ़े जा सकते। इसी प्रकार लौकिक शास्त्रके नियम मनुष्यकी भावनाको अलग रखकर रचे जायें तो वे मनुष्यके