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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समाजके बीच समझौते का वह भाग जो ब्रिटिश भारतीय समाजपर लागू होता था, कार्यान्वित कर दिया गया है। इस बातको ध्यानमें रखते हुए यह कानून रद माना जा रहा है; और यदि इसे लागू किया जायेगा तो ब्रिटिश भारतीय समाज इस कार्यको समझौता तोड़ना समझेगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि जिन नाबालिग एशियाइयोंको देशमें आनेका कोई भी अधिकार नहीं है, उनके प्रवेशको मेरा समाज प्रोत्साहित करना चाहता है। मेरे संघका आदरपूर्वक केवल इतना ही निवेदन है कि १९०७ का अधिनियम २ ब्रिटिश भारतीय समाज-पर लागू नहीं हो सकता। आपके पत्रमें जिस प्रकारके प्रयत्नों का उल्लेख है, उस प्रकारके प्रयत्नों पर तो कोई सर्वसामान्य नया अधिनियम लागू होना चाहिए।

[ ईसप इस्माइल मियाँ ]
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३०-५-१९०८

१४७. पत्र: उपनिवेश सचिवको

[ जोहानिसबर्ग ]
मई २६, १९०८

परममाननीय उपनिवेश सचिव
प्रिटोरिया
महोदय,

श्री गांधीने मुझे अभी बताया है कि सरकारका इरादा स्वेच्छया पंजीयनको एशियाई कानूनके अन्तर्गत लानेका है। जब श्री गांधीने आपसे मुलाकात करनेके बाद समझौतेके बारेमें बताया था, तब उन्होंने बिलकुल दूसरी ही बात कही थी। उन्होंने एक बड़ी सभामें साफ-साफ कहा था कि यदि भारतीय कौम स्वेच्छया पंजीयन करायेगी तो वह कानून रद हो जायेगा। अब श्री गांधीने जो खबर दी है, उससे भारतीय समाजको दुःख और आश्चर्य हुआ है। आपके साथ श्री गांधीका जो पत्र-व्यवहार हुआ है, उससे भी श्री गांधीकी बात प्रमाणित होती है।

इस बारेमें सरकारसे मुझे यह कह देना चाहिए कि अपने ऊपर जोखिम उठाकर भारतीय समाजने पिछले तीन महीनोंमें सरकारकी बड़ी मदद की है। इसलिए मेरे संघको कमसे-कम इतना माननेका हक था कि सरकार अपनी बात पूरी तरह निभायेगी। किन्तु श्री गांधी कहनेके मुताबिक तो आपका इरादा एशियाई अधिनियमको बनाये रखनेका जान पड़ता है।

अतएव मेरे संघका कर्तव्य है कि तीन महीने पहले जो स्थिति थी, उसे फिर शुरू किया जाये। भारतीय कौमको इसीलिए यह सलाह दी गई है कि वह स्वेच्छया पंजीयनके लिए दिये गये प्रार्थनापत्रोंको वापस ले ले और श्री चैमनेको जो दस्तावेज दिये गये हैं वे भी वापस ले लिये जायें। स्वेच्छया पंजीयन करानेकी बातमें तो कौमका केवल सौजन्य था