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पत्र: एम० चैमनेको

और वह समाजको सच्चाई जाहिर करनेके लिए किया गया था। जो सलाह दी गई है। उसके सिवाय कुछ और करना सम्भव नहीं है, क्योंकि समाज उस कानूनको न माननेके लिए शपथ-बद्ध है।

अन्तमें मुझे यह कहना चाहिए कि जो वचन श्री गांधी और उनके साथ हस्ताक्षर करनेवालोंकी मारफत सरकारने दिया था, उसे तोड़ना बड़े दुःखकी बात है और उससे एशियाई समाजकी शंकाएँ बढ़ेंगी। मैं ऐसा मानता हूँ कि मैं स्वयं इस देशका निवासी हूँ, इसलिए इस बातसे मुझे बड़ा दुःख होता है कि जो सत्ताधारी हैं और जो इस देशके ऊपर मेरे नामपर राज्य चलाते हैं, उन्हें अपने वचनोंकी परवाह नहीं है।

आपका आज्ञाकारी सेवक
ईसप इस्माइल मियाँ
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३०-५-१९०८

१४८. पत्र: एम० चैमनेको

पो० ऑ० बॉक्स ४७३६
जोहानिसबर्ग
मई २६, १९०८

श्री एम० चैमने
उपनिवेश कार्यालय प्रिटोरिया
प्रिय महोदय,

औपचारिक रूपसे निवेदन करना चाहता हूँ कि मैं स्वेच्छया पंजीयनके लिए दिये गये अपने प्रार्थनापत्र तथा तत्सम्बन्धी अन्य कागजात, जो मैंने आपको दिये थे, वापस चाहता हूँ। उसके कारण निम्नलिखित हैं:

अभी-अभी मुझे पता चला है कि सरकारका निश्चित रूपसे यह इरादा है कि स्वेच्छया पंजीयनको एशियाई कानूनके अन्तर्गत कानून-सम्मत कर दिया जाये और यह कानून ऐसे एशियाईयोंपर हर प्रकारसे लागू किया जाये। इसे मैं सरकार तथा ट्रान्सवालकी एशियाई जातियोंके बीच किये गये समझौतेका साफ-साफ उल्लंघन समझता हूँ।

जनरल स्मट्सने उस मुलाकातके अवसरपर, जिसमें आप उपस्थित थे, मुझसे कहा था कि यदि एशियाई जातियाँ उक्त समझौतेका पालन करेंगी तो वे उस कानूनको रद कर देंगे। जैसा कि आप जानते हैं, यह बात उन्होंने गत १ फरवरीको लिखे मेरे उस पत्रके[१] उत्तरमें कही थी जिसमें मैंने इस सम्बन्धमें निश्चित आश्वासन दिया जानेकी माँग की थी। मेरा दावा है कि एशियाइयोंने समझौतेसे सम्बन्धित अपने दायित्वका पूर्ण रूपसे ही नहीं, बल्कि उससे आगे बढ़कर, पालन किया है। अतएव, उस कानूनको रद करनेका अपना इरादा

 
  1. देखिए "पत्र: जनरल स्मट्सको", पृष्ठ ४९-५१।