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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(४) चमड़ीके भेदके आधारपर ही लोगोंकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता छीननेका कानून न बनाया जाये।

(५) शिक्षित भारतीय नवागन्तुकोंको भी आनेकी छूट दी जाये।

मैं नहीं सोचता कि संघर्ष इस हद तक जा पहुँचेगा जब ऊपरकी माँगें कर सकनेका अवसर आयेगा। वैसा हो या न हो, अब तो संघर्ष फिर शुरू हो गया है और उसका परिणाम भारतीय कौमके लिए लाभके सिवा और कुछ नहीं है।

ब्रिटिश भारतीय संघकी समितिकी बैठक

समितिकी बैठक बुधवारको हुई। श्री गांधीका कार्यालय खचाखच भरा हुआ था। श्री ईसप मियाँकी नाकपर पट्टी बँधी थी, फिर भी वे उपस्थित हुए और उन्होंने अध्यक्षता की। श्री गांधीने सारी परिस्थिति[१] समझाई और ऊपरके मुताबिक जो कदम उठाये गये, उन्हें लोगोंने पसन्द किया। सबने फिरसे सत्याग्रह छेड़ना स्वीकार किया।

गश्ती चिट्ठी

नीचे का पत्र ट्रान्सवालमें सभी जगह भेजा गया है:

स्वेच्छया पंजीयन और नये कानूनकी बाबत सरकार दगा देगी, यह बात अब स्पष्ट हो गई है। अपना लिखित वचन होते हुए भी जनरल स्मट्स कहते हैं कि स्वेच्छया पंजीयनका नये कानूनसे सिर्फ इतना ही सम्बन्ध होगा कि उसमें पंजीयनका समावेश हो जायेगा। स्वेच्छया कराये गये पंजीयनका ऐसा उपयोग करना साफ दगा देना है। जनरल स्मट्सने जो लिखित वचन दिया है उसका उलटा अर्थ करके वे हमें भ्रमित करना चाहते हैं।

ऐसी दगाके कारण हमें घबरानेकी जरूरत नहीं है। हम सच्चे हैं; इसलिए दगाका नतीजा हमारे लिए लाभदायक ही होगा, यह माननेका कारण है।

अब सत्याग्रहकी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। उसका पहला कदम यह है कि प्रत्येक भारतीय स्वेच्छया पंजीयनको वापस लेनेका पत्र लिखे। वह प्रार्थनापत्र तथा दूसरे दस्तावेज वापस माँगे अथवा उन्हें संघके पास भेज देनेके लिए कहे। जो पत्र[२] लिखा जाये उसकी नकल इसके साथ संलग्न है।

यहाँ सभी दृढ़ हैं और लड़नेके लिए तैयार हैं।

अपनी तरफ सबको हिम्मत बँधाइए। फिलहाल अनुमतिपत्र कार्यालयसे कोई पत्र-व्यवहार नहीं करना है और न पंजीयनपत्र[३] आदिकी माँग ही करनी है। जो बिना परवाने हों, उन्हें परवानेका पैसा भरकर बेधड़क व्यापार करना चाहिए।

नये कानूनकी रूसे जिनके ऊपर मामला चलेगा, श्री गांधी पहले की तरह उनकी ओरसे निःशुल्क पैरवी करेंगे।[४]

हम सब फिरसे बिना पंजीयनके हैं, यही समझना चाहिए।

 
  1. यह भाषण उपलब्ध नहीं है।
  2. यह उपलब्ध नहीं है।
  3. हो सकता है, यहाँ स्वेच्छया पंजीयनके प्रार्थनापत्रकी ओर संकेत हो।
  4. सत्याग्रहियोंके निःशुल्क बचावकी बात गांधीजीने पहली बार सितम्बर १९०६ में कही थी। देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४८७।