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सर्वोदय [३]

ईसप मियाँ

श्री ईसप मियाँकी तबीयत ठीक होती जा रही है। अब वे कुर्सीपर बैठ सकते हैं। नाकपर अभीतक पट्टी की जाती है और वहाँ थोड़ा दर्द है। हाथ आदिपर जहाँ चोटें लगी थीं वहाँ भी अभीतक कुछ दर्द बाकी है। बहुत से लोग अभीतक उनकी तबीयत पूछने जाते हैं। वे उनसे अच्छी तरह बातचीत कर पाते हैं। श्री फिलिप्स तथा श्री डोक कितनी ही बार उनसे मिलने गये हैं। विभिन्न स्थानोंसे सहानुभूतिके पत्र आते रहते हैं।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३०-५-१९०८

१५३. सर्वोदय [३]

सत्यकी जड़ें

सामान्यतः ऐसा होता है कि मालिक होशियार और उत्साही हो तो प्रायः दबावके कारण नौकर अपना काम करता है। और ऐसा भी होता है कि जब मालिक आलसी और कमजोर होता है तब नौकरका काम जितना चाहिए उतना नहीं होता। परन्तु सही नियम तो यह है कि होशियारीमें समान श्रेणीके दो मालिक लें और समान श्रेणीके दो नौकर लें तो भावनायुक्त मालिकका नौकर भावनाहीन मालिकके नौकरकी अपेक्षा अधिक और बढ़िया काम करेगा।

कोई कहेगा कि यह नियम ठीक नहीं है, क्योंकि स्नेह और दयालुताका बदला प्रायः उलटा ही मिला करता है और नौकर मालिकके सिरपर चढ़ बैठता है। परन्तु ऐसा तर्क उचित नहीं है। जो नौकर स्नेहके बदलेमें लापरवाही दिखाता है उसपर सख्ती की जाये तो उसके मनमें बैर और प्रतिहिंसा पैदा होगी। उदार हृदयके मालिकके प्रति जो नौकर बेईमान होगा वह अन्यायी मालिकको हानि पहुँचायेगा।

इसलिए हर समय और प्रत्येक मनुष्यके प्रति परोपकारी दृष्टि रखनेसे नतीजा अच्छा ही निकलता है। यहाँ हम भावनापर, उसे एक प्रकारकी शक्ति मानकर, विचार कर रहे हैं। स्नेह एक अच्छी वस्तु है इसलिए हमेशा स्नेहका व्यवहार करना चाहिए, यह एक अलग बात है। उसका विचार हम नहीं कर रहे हैं। हम तो यहाँ केवल इतना ही कह रहे हैं कि अर्थशास्त्रके साधारण नियमोंको, जिनपर हम विचार कर चुके हैं, स्नेहकी---भावनाकी----शक्ति तोड़ डालती है। इतना ही नहीं, भावना एक भिन्न प्रकारकी शक्ति होनेके कारण अर्थ-शास्त्रके अन्य नियमोंके साथ नहीं टिकती बल्कि उन नियमोंको हटाकर ही टिक सकती है। यदि मालिक तराजूवाला हिसाब लगाता है और बदला पानेके इरादेसे ही दयालुता दिखाता है तो सम्भवतः उसे निराश होना पड़ेगा। दयालुता तो दयालुताके खातिर ही दिखाई जानी चाहिए और बदला अपने-आप बिना माँगे ही मिल जाता है। कहा जाता है कि अपनेको पानेके लिए अपनेको हो मिटाना चाहिए और अपनेको रखनेसे आप जाता है।[१]

 
  1. सेंट मॅथ्यू प्रकरण १०, पद ३९।