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पत्र: 'इंडियन ओपिनियन' को

मजदूरोंको अपनी नौकरीके स्थायी होनेका निश्चय नहीं होता, तब अधिक मजदूरी माँगना उनके लिए आवश्यक हो ही जाता है; परन्तु यदि किसी प्रकार उन्हें यह भरोसा हो जाये कि उनकी नौकरी आजीवन बरकरार रहेगी तो वे बहुत ही कम मजदूरीपर काम करेंगे। इसलिए यह स्पष्ट है कि जो मालिक अपने मजदूरोंको हमेशाके लिए रखता है उसे अन्तमें लाभ ही हुआ करता है। और जो नौकर मुस्तकिल ढंगसे नौकरी करते हैं उनको भी फायदा होता है। ऐसे कारखानोंमें लम्बे मुनाफे नहीं हो सकते, भारी जोखिम नहीं उठाई जा सकती और बड़ी होड़ नहीं लगाई जा सकती। सैनिक अपने सरदारके लिए मरने-खपनेको तैयार हो जाता है और इसी कारण सिपाहीका पेशा साधारण मजदूरके पेशेकी अपेक्षा अधिक सम्मान योग्य माना गया है। दरअसल सैनिकका धन्धा कत्ल करना नहीं है, बल्कि दूसरेकी रक्षा करते हुए स्वयं कत्ल हो जाना है। जो सिपाही बनता है वह अपनी जान राज्यके हाथमें सौंप देता है। वकील, चिकित्सक और पादरीके बारेमें भी यही बात है। इसी कारण तो हम उनके प्रति सम्मानका भाव रखते हैं। अपनी जानका खतरा मोल लेकर भी वकीलको न्याय कराना उचित है। अनेक संकटोंको सहन करके भी चिकित्सकको अपने रोगीकी सार-सँभाल करनी चाहिए और पादरीको, चाहे जो भी हो, अपने समाजको सदुपदेश देते और सही मार्ग दिखाते रहना चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३०-५-१९०८

१५४. पत्र: 'इंडियन ओपिनियन' को[१]

[ जोहानिसबर्ग ]

सम्पादक
'इंडियन ओपिनियन'
महोदय,

यद्यपि मैं इस समाचारपत्रके गुजराती विभागमें बहुत लिखता हूँ और इसे सब लोग जानते हैं, फिर भी मेरे दस्तखतोंसे कदाचित् ही कभी कोई लेख प्रकाशित होता है। देखता हूँ, फिर[२] अपने नामसे लिखनेका मौका आ गया है।

गत शनिवारको श्री कार्टराइटसे जब मेरी मुलाकात हुई, उन्होंने मुझे श्री स्मट्सका पत्र दिखाया। उसमें कहा गया है कि जो नया विधेयक आनेवाला है, वह स्वेच्छया पंजीयनको बाकायदा मान्यता देनेके लिए ही है। उस विधेयकके मुताबिक स्वेच्छया पंजीयन करानेवाले भारतीयोंको पंजीयनकी धाराओंका उल्लंघन करनेकी सजासे मुक्त किया जायेगा। अन्य बातोंमें तो उनपर भी नया कानून ही लागू होगा। इसका अर्थ स्पष्ट विश्वासघात हुआ। यह तो, "मरे नहीं, गुजर गये" जैसी बात हुई। फिर भी यदि हम सच्चे होंगे तो वैसा कुछ भी नहीं है।

 
  1. यह "एक संवाददाता द्वारा प्रेषित: श्री गांधीका पत्र", शीर्षकसे छपा था।
  2. इसी तरह इससे पहलेके पत्रके लिए देखिए "संक्षेपमें स्पष्टीकरण", पृष्ठ ९६-९७।