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१५५. पत्र: ई० एफ० सी० लेनको

जोहानिसबर्ग मई
३०, १९०८

प्रिय श्री लेन,

क्या आप कृपया मुझे बतायेंगे कि मैं गत १ और २२ फरवरीके अपने पत्रों तथा तत्सम्बन्धी उत्तरोंको प्रकाशित कर सकता हूँ अथवा नहीं?

आपके पिछले नोटके संदर्भमें मैं कहना चाहता हूँ कि मैंने कभी सरकार से अपने लिए संरक्षणकी याचना नहीं की; न उसकी इच्छा ही कभी की है। अब भी मेरी ऐसी कोई ख्वाहिश नहीं है।[१]

आपका सच्चा

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ४८१८) से।

१५६. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

[ मई ३०, १९०८ के पूर्व ]

फेरीवाले सावधान!

जोहानिसबर्गमें 'डी ट्रान्सवालर' नामक एक समाचारपत्र अंग्रेजी और डच भाषामें निकलता है। उसने शाक-सब्जी बेचनेवाले भारतीय फेरीवालोंपर हमला किया है। उसके कुछ अंश नीचे दे रहा हूँ। वह अखबार लिखता है:

शाक-सब्जी बेचनेवाले भारतीय फेरीवालोंको गोरी स्त्रियाँ अब भी प्रोत्साहन देती हैं। यह गोरोंके लिए हानिकारक है। फरवरी महीनेमें सात भारतीयोंको सजा हुई थी, क्योंकि उन्होंने सोनेके कमरेमें शाक-सब्जी रख छोड़ी थी। नगरपालिकाको ऐसी सब्जी जब्त कर लेनेका हक था, किन्तु उसने जब्त नहीं की। जुबिली स्ट्रीटमें नेथनसनके घरके सामने तीन पाखाने हैं; जिनमें एक गुसलखानेकी तरह, एक पाखानेकी तरह और एक शाक-सब्जी रखनेकी कोठरीकी तरह काममें लाया जाता है। यह जाननेके बाद कौन भली औरत ऐसी शाक-सब्जी खरीद सकती है? इनके अलावा नगरपालिकाके दो अस्तबल हैं, जिनमें कुछ "कुली" सोते हैं और अपनी शाक-सब्जी भी रखते हैं। इस बातकी जाँच करने के लिए रातको निरीक्षकोंको निकलना चाहिए। आदि, आदि।

इसमें बहुत अतिशयोक्ति है, इसमें कोई सन्देह नहीं। फिर भी, कुछ फेरीवाले गन्दी जगहमें रहते हैं, खुद गन्दे रहते हैं और शाक-सब्जी गन्दी जगहमें रखते हैं, इसमें सन्देह नहीं है। यह तय

 
  1. देखिए पत्र: जनरल स्मट्सको", पृष्ठ २४६-४७ और उसी पृष्ठपर पाद-टिप्पणी ४