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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है कि यदि वे आवश्यक सुधार नहीं करेंगे, तो अन्तमें इस देशमें भारतीय फेरीवालोंका नाम-निशान न रह जायेगा। एक तरफसे बात उठाई जाती है कि फेरीवालोंके लिए परवाना कानून बनना चाहिए; दूसरी तरफ हमारी गन्दगीके समाचार प्रकाशित होते हैं। इसलिए मैंने सलाह दी है कि यदि परवाने छिन जायें तो फेरीवाले सत्याग्रह करके जीत सकते हैं; किन्तु सत्याग्रहकी लड़ाईमें एक बात याद रखनी है कि उसमें सत्यका कभी त्याग नहीं किया जा सकता। गन्दा रहना या गन्दगीमें शाक-सब्जी रखना न्याय-विरुद्ध है, ऐसा मैं समझता हूँ, और जो न्याय-विरुद्ध है उसे सत्यके भी विरुद्ध समझना चाहिए।

सोमवार [ जून १, १९०८ ]

सत्याग्रहकी लड़ाई

यह संघर्ष अभी सचमुचमें शुरू हुआ नहीं माना जा सकता, किन्तु कहा जा सकता है कि उसकी नींव पड़ गई है। श्री गांधीके नोटिसका[१] श्री चैमनेने यह जवाब दिया है कि जनरल स्मट्स जब केपसे वापस आ जायेंगे तब अर्जियाँ इत्यादि वापस लेनेके बारेमें जवाब दिया जायेगा। इसपर श्री गांधीने तार[२] किया कि यह ऐसी बात नहीं है जो रोकी जा सके, और कागज-पत्र तुरन्त वापस मिलने चाहिए। यह तार गत शुक्रवारको किया गया था। शनिवारको तार मिला कि श्री गांधीने नये कानूनका जो मसविदा[३] भेजा था वह गुम हो गया है, इसलिए फिर भेजा जाये। श्री गांधीने इसपर २२ फरवरीको पत्र[४] तथा नये बिलका मसविदा भेज दिया है। सोमवारको टेलिफोन मिला कि जनरल स्मट्सने मन्त्रिमण्डलकी बैठक बुलाई है और मंगलवारको जवाब दिया जायेगा। यह 'चिट्ठी' मैं सोमवारकी रातको लिख रहा हूँ। इस समयतक परिस्थिति ऊपरके मुताबिक है।

कार्टराइटके प्रयत्न

इस बीच श्री कार्टराइट बड़ी कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने सर पर्सी फ्रिट्ज़पैट्रिक, श्री चैंपलिन तथा श्री लिड्जेसे मुलाकात कराई है। इन सभी सज्जनोंने कहा कि जिन लोगोंने स्वेच्छया पंजीयन कराया है, या जो बादमें करायेंगे, उनपर यह अत्याचारी कानून लागू नहीं होना चाहिए। इस सम्बन्धमें पहल भारतीय समाजके हाथमें है।

जबतक खानगी सलाहकी बात चल रही है और पूरी नहीं हुई, तबतक और कोई कदम उठाना जरूरी नहीं है। इसलिए सार्वजनिक सभा नहीं की गई। यदि संघर्ष करना पड़ा, तो सार्वजनिक सभा बुलानी पड़ेगी।

सरकारको जो पत्र लिखे गये हैं, उन्हें प्रकाशित करनेका कोई विचार नहीं था। फिर भी वे 'इंडियन ओपिनियन' से 'प्रिटोरिया न्यूज' में उद्धृत हो चुके हैं।

प्रार्थनापत्र वापस करनेके नोटिस श्री चैमनेके नाम पहुँच रहे हैं। सुलह होनेकी आशासे काम कुछ ढीला चल रहा है। ब्रिटिश भारतीय संघकी ओरसे प्रत्येक शहरको गश्ती पत्र भेजे गये हैं। लोग नोटिस भेजेंगे।[५]

 
  1. देखिए "पत्र: एम० चैमनेको", पृष्ठ २५३-५४।
  2. यह तार उपलब्ध नहीं है।
  3. देखिए "पत्र: जनरल स्मट्सको", के साथ संलग्न पत्र, पृष्ठ १००-०१।
  4. देखिए "पत्र: जनरल स्मट्सको", पृष्ठ ९८-९९।
  5. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ २५८-६१।