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१५७. पत्र: ई० एफ० सी० लेनको

जोहानिसबर्ग,
जून ३, १९०८

प्रिय श्री लेन,

मैंने आपको अपने और जनरल स्मट्सके बीच एशियाई अधिनियमके सम्बन्धमें हुए उस पत्र-व्यवहारको, जिसे गुप्त रखनेकी बात थी, प्रकाशित करनेके लिए उनकी अनुमति[१] माँगते हुए शनिवारको एक पत्र[२] लिखा था। क्या अब मैं उसके उत्तरकी आशा कर सकता हूँ?

आपका सच्चा,

श्री अर्नेस्ट एफ० सी० लेन
प्रिटोरिया

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ४८१९) से।

१५८. पत्र: जनरल स्मट्सको[३]

[ जोहानिसबर्ग ]
जून ६, १९०८

[ प्रिय श्री स्मट्स ]

आशा है, आज आपके और मेरे बीच जो मुलाकात[४] हुई उसके बारेमें यह पत्र लिखनेके लिए मुझे क्षमा करेंगे। यद्यपि समझौतेका पालन करनेकी आपकी इच्छाको मैं मान्य करता हूँ, फिर भी मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि मुलाकात सन्तोषजनक नहीं थी। अधिनियम रद करने के बारेमें आप अब भी हिचकते हैं; और इस बातपर जोर देते हैं कि यदि अधिनियम रद नहीं हुआ तो जो एशियाई गत माहकी ९ तारीखके बाद आये हैं और जिन्हें देशमें प्रवेश करनेका अधिकार है, उन्हें इसी अधिनियमके अन्तर्गत पंजीयन कराना

 
  1. लेनने गांधीजीको ४ जूनको इसका उत्तर भेजा, जिसमें पत्रोंके प्रकाशनकी अनुमति नहीं दी गई। कारण यह बताया गया कि चूँकि ये पत्र गुप्त तथा व्यक्तिगत थे इसलिए जनरल स्मट्सने गांधीजीके पत्रोंमें दिये गये वक्तव्योंके न विस्तारसे उत्तर दिये थे और न उनका खण्डन ही किया था। "अतः पत्र-व्यवहारका प्रकाशन सारी बातों पर गलत रोशनी ही डालेगा"। एस० एन० ४८२१।
  2. देखिए "पत्र: ई० एफ० सी० लेनको", पृष्ठ २६५।
  3. इस पत्रकी एक नकल श्री रिचने उपनिवेश कार्यालयको लिखे गये अपने २७ जुलाई, १९०८ के पत्रके साथ संलग्न करके भेजी थी।
  4. श्री लेनने जनरल स्मट्सकी ओरसे ४ जून, १९०८ को गांधीजीको मुलाकातके लिए लिखा था। पत्रमें मुलाकातका उद्देश्य पहले कराये जा चुके स्वेच्छया पंजीयनको कानूनी रूप देनेके लिए "एशियाई विधेयक मसविदे" पर विचार करना बताया गया था। देखिए एस० एन० ४८२२।