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सम्पूर्ण गांधी वाड़्मय

श्री लेनने शुक्रवारको[१] मुझे लिखा था कि आपको लिखे गये मेरे १ और २२ फरवरीके पत्र गोपनीय होनेके नाते प्रकाशित नहीं किये जाने चाहिए। चूँकि वे मेरे इस दावेके साक्षात प्रमाण हैं कि आपने अधिनियमको रद करनेका वादा किया था, अतः यदि आप उस वादेसे हटेंगे, और यदि आप मेरे दिये हुए वक्तव्यका खण्डन करेंगे, तो, वैसी दशामें, आशा करता हूँ, आप मुझे एकतरफा गोपनीयतासे बद्ध नहीं मानेंगे।

[ आपका, आदि,
मो० क० गांधी]

[ जनरल जे० सी० स्मट्स
उपनिवेश कार्यालय
प्रिटोरिया ]
[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-७-१९०८

इंडिया ऑफिस, ज्युडिशियल तथा पब्लिक रेकर्ड्स (२८९६/०८) से भी।

१५९. पत्र: अल्बर्ट कार्टराइटको

[ जोहानिसबर्ग ]
जून ६, १९०८

प्रिय श्री कार्टराइट,

आपने मुझे जिस पूर्वोदाहरणको अपनानेकी अनुमति दे रखी है, उसके अनुसार मैं जनरल स्मट्सको लिखे गये अपने पत्रकी[२] एक नकल आपको भेजता हूँ। मुलाकात सन्तोषजनक भी रही और असन्तोषजनक भी। असन्तोषजनक इस दृष्टिसे रही कि स्थितिपर नये सिरे से विचार करनेकी आवश्यकता थी; इसलिए मुझे [ कानून ] रद किये जानेका निश्चित आश्वासन लिये बिना ही लौटना पड़ा। किन्तु मुझे जहाँतक पता चला है प्रगतिशील दल रास्तेमें कोई बाधा न डाले तो अधिनियम रद कर दिया जायेगा। मुझे यह भी मालूम हुआ है कि यदि हम अपने प्रतिरोधके सिद्धान्तपर अटल रहे तो इससे बचनेका कोई उपाय नहीं है। वे यह समझते हैं कि कानूनकी पुस्तकमें एक ही मतलबके लिए दो कानून नहीं रखे जा सकते। वे इस स्थितिसे, कि स्वेच्छया पंजीयन करानेवालोंके दर्जेकी एशियाई अधिनियमके अन्तर्गत व्याख्या होनी चाहिए, बिलकुल हट गये हैं। इसलिए यदि हम दृढ़ न रहे और प्रगतिशील दलने इसतरह रोड़े अटकाये तो, कहना जरूरी नहीं है कि हम सम्भवतः ६-७ हजार एशियाइयोंको लगभग कानून-विहीनकी हास्यास्पद स्थितिमें डाल देंगे।

 
  1. वास्तवमें लेनने गांधीजीको यह पत्र ४ जून, १९०८ को लिखा था, और उस दिन बृहस्पतिवार था।
  2. देखिए पिछला शीर्षक।