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नेटालमें हत्याएँ

मैं आपसे यथाशीघ्र मिलूँगा। इस बीच, मुझे भरोसा है कि आप शान्तिके देवदूतका कार्य जारी रखेंगे और न्याय तथा औचित्यके पक्षमें प्रगतिशील दलके मनको समुचित रूपसे बदलनेकी कोशिश करते रहेंगे।

आपका सच्चा,

हस्तलिखित दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिको फोटो नकल (एस० एन० ४८२३ / ए) से।

१६०. नेटालमें हत्याएँ

नेटालमें आजकल भारतीयोंकी हत्याएँ की जा रही हैं। एक लेखक उसकी ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। वह सूचित करता है कि दो सप्ताहमें सात खून हुए हैं। एक टोंगाटमें, दो केटोमेनरमें, एक स्प्रिंगफील्डमें, एक नॉर्थडीनमें और दो डर्बनमें। इसके सिवा, वही लेखक यह भी सूचित करता है कि इन सात खूनोंमें केवल एक ही खूनीको अभीतक पुलिस गिरफ्तार कर पाई है और वह भी इसलिए कि अपराधी स्वयं उपस्थित हो गया था। चोरीका अपराध भी बढ़ गया है, यह भी इस लेखकने सूचित किया है।

ऊपरकी बात विचारके योग्य है। जो समाज स्वतन्त्रताका अधिकार पाना चाहता है, उस समाजमें अपना रक्षण करनेकी शक्ति भी होनी चाहिए। इसके दो उपाय हैं। एक आसान और सरल होते हुए भी कठिन है; और वह है अपने आपको सुधारना। खून किये जानेका अवसर ही नहीं आने देना चाहिए; अपने पास धन-संग्रह नहीं करना चाहिए और जो खून करते हैं उनको सुधारना चाहिए। जबतक न सुधरें तबतक उन्हें मनमाने खून करने देना चाहिए। जब ये लोग थक जायेंगे, तब स्वयं खून करना बन्द कर देंगे। यह ईश्वरीय और प्राकृतिक नियम है। एक समाजके तौरपर फिलहाल हममें ऐसा करने की शक्ति नहीं है। हमारे समाज में ऐसी बहादुरी आ जाये और हम जान-मालसे निःसंग होकर रहें ऐसा समय कभी आयेगा ही नहीं, यह तो हम नहीं कह सकते; किन्तु ऐसा समय आना कठिन जरूर है। आजतक किसी भी समाजके ऐसा हो सकनेका इतिहासमें प्रमाण नहीं है। फिर भी, दुनियामें ऐसा करनेवाले व्यक्तियोंके उदाहरण मिलते हैं।

यदि हम ऊपरके अनुसार नहीं चल सकते, तो हमें स्वतन्त्र होनेकी इच्छा रखनेवाले समाजकी तरह दूसरा रास्ता जानना चाहिए। वह रास्ता है, बलके मुकाबलेमें बल आजमानेका। हममें जान और मालकी रक्षा करनेकी ताकत आनी चाहिए। यह ठीक है कि नेटालकी सरकार रक्षा करेगी; किन्तु, जहाँतक गोरोंका सम्बन्ध है [ जब उनपर आक्रमण होता है, ] वे हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रहते। वे अपने रक्षणके साधन स्वयं रखते हैं। यदि इसपर कोई यह कहे कि हमें हथियार रखनेका हक नहीं है अथवा जिसे चाहिए उसे हथियार नहीं मिलते तो यह इस बातका जवाब नहीं है। हम बिना हथियारके भी अपना रक्षण कर सकते हैं। यह तो शरीरको पुष्ट करने और कौशलकी बात है। अमेरिकामें जब गोरोंने हमपर हमला किया, तब हम लोग छिप गये। जब गोरे जापानियोंसे भिड़े तब जापानी लाठियाँ और बोतलें लेकर तैयार हो गये।[१] अनेक गोरे बिना पिस्तौलके अपना बचाव कर सकते हैं।

 
  1. यह घटना कैनडामें हुई थी, अमेरिकामें नहीं; देखिए "कैनडाके भारतीय", पृष्ठ १९९।