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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उस व्यवसायमें वह जैसे अपने लड़केके साथ पेश आयेगा उसी प्रकार उसे अन्य नौकरोंके साथ पेश आना चाहिए। इसका नाम ही सच्चा अर्थशास्त्र है। और जिस प्रकार जहाज खतरेमें आ जाये तो कप्तानका फर्ज है कि वह स्वयं जहाजको सबसे आखिरमें छोड़े, उसी प्रकार अकाल इत्यादि अन्य संकटोंमें व्यापारीको चाहिए कि वह अपनेसे पहले अपने आदमियोंकी रक्षा करे। ऐसे विचार किसीको आश्चर्यजनक प्रतीत होंगे लेकिन ऐसा लगना ही इस जमानेकी विचित्रता है। क्योंकि विचार करनेपर सब यह समझ सकेंगे कि सच्ची नीति-रीति तो वही है जो हम अभी कह आये हैं। जिस जातिको ऊँचा उठना है उस जातिमें अन्य प्रकारकी नीति-रीति कदापि नहीं चल सकती। अंग्रेज जाति अबतक टिकी हुई है इसका कारण यह नहीं है कि उसने अर्थशास्त्रके नियमोंका पालन किया है; कारण यह है कि उनको अनेक श्रेष्ठ पुरुषोंने भंग किया है और ऊपर बताई हुई नीतिकी बातोंका पालन किया है। इसीसे वह जाति आजतक टिकी हुई है। नीतिके इन नियमोंको तोड़नेसे कैसी हानि होती है और किस प्रकार जातिको पीछे हटना पड़ता है, इसपर आगे चल कर विचार करेंगे।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ६-६-१९०८

१६२. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

[ सोमवार, जून ८, १९०८]

क्या समझौता लिखित है?

कई जगहोंसे यह सवाल पूछा गया है; इसलिए जिन पत्रोंके आधारपर समझौता हुआ है मैं फिर उनका अनुवाद दे रहा हूँ। फिर दे रहा हूँ-- कहनेका कारण यह है कि फरवरीमें समझौतेसे सम्बन्धित पत्रोंका अनुवाद और अर्थ दिया जा चुका है।[१] जो पत्र जेलसे भेजा गया था, उसकी उत्पत्ति स्मरण रखने योग्य है। जेलमें सरकारकी तरफसे श्री कार्टराइट आये और उन्होंने श्री गांधीके सामने एक पत्र हस्ताक्षर करनेके लिए पेश किया। उसमें कुछ संशोधन किये गये और वह संशोधित पत्र जनरल स्मट्सको भेजा गया। उस पत्रका अनुवाद नीचे के अनुसार है।[२]

क्या-क्या परिवर्तन हुए?

ऊपरके मुताबिक पत्र भेजा गया। मूल मसविदेमें नीचे लिखे मुताबिक था:

(१) चीनियोंकी बात उसमें नहीं थी।

(२) १६ वर्षके भीतरके बालकोंका भी स्वेच्छया पंजीयन कराने की बात थी।

(३) स्वेच्छया पंजीयन करानेवालोंको कानूनकी रूसे सजा न मिलने की बात थी।

(४) समझौतेकी तारीखके बाद वापस आनेवाले भारतीयोंके बारेमें स्पष्टीकरण नहीं था।

(५) पंजीयन-कार्यालय फिर खोलनेकी बात थी।

 
  1. इनका संक्षिप्त अनुवाद किया गया था। देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ६४-७३।
  2. इसका अनुवाद यहीं नहीं दिया जा रहा है। मूल अंग्रेजीसे अनूदित पाठके लिए देखिए: "पत्र: उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ ३९-४१।