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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

(६) उसमें धार्मिक भावनाके विषयमें कुछ नहीं था।

ऊपरके पत्रमें:

(१) चीनियोंका नाम दाखिल किया गया।

(२) यह निश्चित हुआ कि १६ वर्षके भीतरवालोंके लिए स्वेच्छया पंजीयन भी लागू न हो।

(३) स्वेच्छया पंजीयन करानेवालोंपर कानून लागू न हो, यह निश्चय हुआ। ('कानून लागू न होना' और 'सजा लागू न होना' इन दोनों वाक्यांशोंमें बड़ा अन्तर है। पाठक इस बातको याद रखें।)

(४) समझौतेकी तारीखके बाद आनेवालोंको भी स्वेच्छया पंजीयन कराने का हक रहे।

(५) पंजीयन कार्यालय फिर खोलनेकी बातके दो अर्थ होते हैं, इसलिए पंजीयन 'स्वीकार करनेके लिए' लिखा गया।[१]

(६) धार्मिक भावनापर कोई चोट नहीं पहुँचनी चाहिए, यह स्पष्ट करनेकी बात जोड़ी गई।

इसमें यह याद रखना चाहिए कि यदि स्वेच्छया पंजीयन करानेवाले लोग अधिक हो गये तो फिर कानून नहीं रह सकेगा। अतः हम देख सकते हैं कि इसमें कानून रद हो जानेकी बात आ जाती है।

जनरल स्मट्सका जवाब

जनरल स्मट्सने इसका निम्नलिखित जवाब दिया।[२]

इसका अर्थ

इस पत्रके द्वारा जनरल स्मट्सने कैदियोंके पत्रको बिना किसी शर्तके स्वीकार किया है। इसलिए यह बात स्वीकृत हुई कि जो स्वेच्छया पंजीयन करायेंगे उनपर कानून लागू नहीं हो सकता और यदि स्वेच्छया पंजीयन करानेवालोंमें सब अथवा अधिकांश भारतीय आ जायें, तो यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कानून रद हो जाना चाहिए।

इसके बाद १ फरवरीको श्री गांधीने जनरल स्मट्ससे मुलाकातकी और उन्हें पत्र लिखा। फिर, ३ तारीखको वे प्रिटोरिया बुलाये गये; और तब भी कानून रद करने आदिकी बात हुई। २२ फरवरीको उन्होंने तत्सम्बन्धी विधेयकका मसविदा[३] बनाकर जनरल स्मट्सको भेजा। ये सब बातें तो पाठकोंके ध्यानमें होंगी ही। इसलिए इसमें सन्देह नहीं है कि कानून रद होनेकी बातकी लिखा-पढ़ी हुई है। इस पर से अब आप देख सकते हैं कि जनरल स्मट्स इससे मुकरना चाहते थे; किन्तु वे मुकर नहीं सकते। वे नहीं मुकरेंगे यह तो निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता, किन्तु इसका दारोमदार केवल हमारे साहसपर है।

 
  1. गांधीजीने 'पंजीयन फिर खोलने'के स्थानपर 'पंजीयन स्वीकार' करना लिख दिया था। देखिए पादटिप्पणी ६, पृष्ठ ४०।
  2. कार्यकारी सहायक उपनिवेश सचिव द्वारा लिखित इस पत्रका अनुवाद (पृष्ठ ६४ पर) पहले दिया जा चुका है, इसलिए यहाँ नहीं दिया जा रहा है।
  3. देखिए, "पत्र: जनरल स्मट्सको", का संलग्न-पत्र, पृष्ठ १००-०१।