पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/३१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



जनरल स्मट्ससे मुलाकात

प्रार्थनापत्र वापस लेनेके नोटिस भेजे जानेके तथा श्री कार्टराइट आदि मित्रोंकी मददके परिणामस्वरूप गत शुक्रवारको नये विधेयकपर चर्चा करनेके बारेमें जनरल स्मट्सका पत्र आया। उसपर तुरन्त समितिकी बैठक बुलाई गई। श्री ईसप मियाँ उसमें उपस्थित हुए और बैठकने प्रस्ताव किया कि जनरल स्मट्ससे पूछा जाये कि इस कानूनमें क्या होगा। श्री गांधी यह जाननेके लिए जायेंगे और समितिको तत्सम्बन्धी विवरण देंगे। श्री गांधीको सूचित किया गया कि वे जनरल स्मट्सके सामने किसी तरह न बँधे; केवल अत्याचारी कानून रद करनेकी बातपर अड़े रहें।

शनिवारको जनरल स्मट्ससे मुलाकात हुई। उस समय कानूनके रचयिता श्री मैथ्यूज, श्री गॉर्जेस[१] और श्री चैमने हाजिर थे। बातचीत करते हुए प्रवासी अधिनियममें फेरफार करने और कानून रद करने की चर्चा हुई। जनरल स्मट्सने स्वीकार किया कि एशियाई कानून निकम्मा है। श्री लेनने श्री कार्टराइटको जो पत्र लिखा उसे उन्होंने भूल बताया और कहा कि अन्तमें चाहे जो विधेयक पास किया जाये, किन्तु जिन्होंने स्वेच्छया पंजीयन करा लिया है उनपर कानून लागू नहीं होगा। जिन्होंने पंजीयन नहीं कराया है, उनकी हदतक कानून रद होगा या नहीं, इसके विषयमें पूरा आश्वासन न देते हुए उन्होंने कहा कि अब फिर नया विधेयक बनेगा। इसका यह अर्थ हुआ कि जनरल स्मट्स अपनी तीन बातोंमें से इस एकका पालन करेंगे कि जिन लोगोंने स्वेच्छया पंजीयन करा लिया है, कानून उनपर लागू नहीं होगा। इस वचनके पालनमें दूसरे दो वचन आ ही जाते हैं, क्योंकि यह नहीं हो सकता कि भारतीय समाजके आधे भागपर एक कानून और आधे भागपर दूसरा कानून लागू हो। अर्थात् कानून रद होगा। होना ही चाहिए। और बादमें आनेवालोंका समावेश नये कानूनमें होना चाहिए।

स्मट्सको पत्र

किन्तु जान पड़ता है कि जनरल स्मट्स सत्याग्रहके तथा स्वेच्छापूर्वक दिये गये प्रार्थना-पत्रोंको वापस माँगनेके भयसे ही न्याय करना चाहते हैं। इसलिए श्री गांधीने शनिवारको उन्हें निम्नलिखित पत्र[२] लिखा।

सोमवारकी शाम तक की परिस्थिति ऐसी है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १३-६-१९०८
 
  1. ट्रान्सवाल्के कार्यकारी सहायक उपनिवेश सचिव।
  2. यह यहाँ नहीं दिया जा रहा है; देखिए "पत्र: जनरल स्मट्सको", पृष्ठ २६८-७०।