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१६३. पत्र: एच० एल० पॉलको

जोहानिसबर्ग,
जून ११, १९०८

प्रिय श्री पॉल,

श्री लुई जोज़ेफने[१] मुझे लिखा है कि अब आप जोज़ेफ रायप्पनमें दिलचस्पी ले रहे हैं। यदि आप कुछ रुपया इकट्ठा कर सकें तो यह अधिक अच्छा होगा, क्योंकि जोज़ेफको निश्चय ही कुछ और रुपयेकी आवश्यकता होगी। यहाँ अभीतक धन-संग्रह चल रहा है। इसके अलावा बात यह है कि यदि चन्दा हो जाये तो वह श्री पोलकको दिया जा सकता है, क्योंकि श्री पोलकने ५० पौंड बिलकुल दे नहीं दिये हैं।[२] वे आशा करते हैं कि जोज़ेफ उन्हें यह रकम लौटा देंगे। इससे यह रुपया फिर किसी उपयोगी कार्यके लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।

बालिका ऐंजी[३], स्पष्टतः अपने संरक्षकको बिलकुल भूल गई है। शायद वह सोचती है कि उसे अब संरक्षणकी जरूरत नहीं रही है, किन्तु उससे कहें, वह इस बातको न भूले कि अभी बहुत दिन नहीं हुए, जब श्री आइज़क और मैं उसे हाथोंपर बहुत दूर तक उठाकर ले गये थे।

आपका, हृदयसे,
मो० क० गांधी

श्री एच० एल० पॉल[४]
मुख्य मजिस्ट्रेटका दफ्तर
डर्बन

मूल अंग्रेजी पत्रकी प्रतिलिपि (सी० डब्ल्यू० ४५४७) से। सौजन्य: यूजिन जोज़ेफ पॉल, पीटरमै रित्सबर्ग।

 
  1. जोज़ेफ रायप्पनके सम्बन्धी।
  2. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ २६७।
  3. श्री पॉलकी पुत्री।
  4. दक्षिण आफ्रिकामें मजिस्टेटकी अदालतोंमें एक भारतीय दुभाषिये।