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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करना चाहते हैं, इसलिए हम श्री गांधीको सलाह देते हैं कि वे फिरसे सत्याग्रहकी लड़ाई शुरू न करें। यह स्पष्ट है कि उदार दलमें भारतीय समाजके अच्छे मित्र हैं।

सर जॉर्ज फेरार

संसदमें भाषण करते हुए सर जॉर्ज फेरार इस तरह बोले:

प्रगतिवादी दल सरकारसे कहता है कि वह हमारे साथ समझौता कर ले। ऐसा करनेके लिए उदाहरण हैं। जब एशियाई कायदेके बारेमें सरकारको कष्ट हुआ था, तब उसने प्रगतिवादी दलकी मदद ली थी[१]...। भारतीय समाजके बारेमें जो-कुछ हुआ है, सो हम जानते हैं। सरकारने भारतीय समाजके बारेमें जो कुछ किया वैसा पुलिस के सिपाहियोंके प्रति क्यों नहीं करती? क्या वह पुलिसके प्रति भारतीयोंसे भी बुरा बरताव करेगी?

इस तरह सभी स्थानोंपर सत्याग्रहियोंका उदाहरण दिया जाता है। इसी तरह मंगलवारकी रातको 'नेटिव अफेयर्स सोसाइटी' में बात निकली और भारतीय सत्याग्रहका उदाहरण दिया गया।

कब्रिस्तान [२]

फिलहाल यह झगड़ा खत्म हुआ जान पड़ता है। टाउन क्लार्ककी ओरसे टेलिफोनपर खबर मिली है कि कब्रिस्तानमें मुसलमानोंके सिवा अन्य मुर्दे नहीं दफनाये जायेंगे। नगर परिषद्की ओरसे अभीतक लिखित जवाब नहीं मिला है।

शाहजीका मामला

शाहजी तथा मौला बख्शका मामला शुक्रवारको था। किन्तु श्री जॉर्डनकी अदालतमें अन्य व्यस्तताओंके कारण वह २४ जूनतक मुल्तवी कर दिया गया है। श्री जॉर्डनने इस मामलेके बारेमें कहा कि उनके पास गुमनाम धमकीका पत्र[३] आया है और ऐसे पत्रोंका उनपर कोई असर होनेवाला नहीं है। उक्त महोदयने कहा कि गुमनाम पत्र लिखनेवालेको हमारी चुनौती है। शाहजीके वकील श्री वान डिगेलेनने कहा कि निस्सन्देह वह पत्र उनके मुवक्किलकी तरफसे नहीं लिखा गया है। सम्भावना यह है कि पत्र लिखनेवाला पठानोंमें से ही कोई जालिम होगा। कुछ भी हो, गुमनाम पत्र लिखना बहुत खराब बात है और वह कमजोर समाजकी निशानी है। यदि यह टिप्पणी गुमनाम पत्र लिखनेवालेको दिखे, तो उसे स्मरण रखना चाहिए कि इससे भारतीय समाजपर कलंक लगता है।

फोक्सरस्टमें एक ज्यादती

सैयद मुहम्मद नामक एक भारतीय पिछले हफ्ते डर्बनसे वापस आये। उनके पास स्वेच्छया पंजीयनके प्रार्थनापत्रकी पहुँच थी। उसपर अंगूठेकी छाप न होनेके कारण उन्हें

 
  1. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ६८-९।
  2. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ २६५-६७।
  3. शाहजीपर मजिस्ट्रेट जोर्डनकी अदालतमें गहरी शारीरिक चोट पहुँचानेकी उत्तेजना देने और दूसरे व्यक्तिपर ईसप मियाँपर हमला करनेका अभियोग लगाया गया था। गुमनाम चिट्ठी एक पठानकी मानी गई थी; उसने मजिस्ट्रेटको धमकी दी थी कि यदि वह अभियुक्तोंके खिलाफ निर्णय देगा तो उसकी हत्या कर डाली जायेगी।