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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हम अपने अवगुणोंकी तुलना कई बार गोरोंके अवगुणोंके साथ करते हैं और जब हमें यह मालूम होता है कि गोरोंमें वैसे ही अवगुण हैं तो हम अपने अवगुणोंकी परवाह नहीं करते। इस बातसे हमारी हीनता प्रदर्शित होती है। इसका तो यह अर्थ हुआ कि हम गोरोंको अपनेसे बढ़कर मानते हैं और यह सोचते हैं कि उनमें सद्गुण सीमापर पहुँच गये हैं। वास्तवमें गोरे हमसे बढ़कर हैं ऐसा विशेष रूपसे देखनेमें नहीं आता और हममें उनकी अपेक्षा अधिक गुण नहीं आ सकते, सो भी नहीं है।

चूँकि गोरे व्यभिचारी हैं, इसलिए हम भी हों, इससे अधिक बुरा विचार दूसरा नहीं हो सकता। उनमें कुछ और तरहका व्यभिचार है तथा उनके धर्म-शिक्षक तथा अन्य सुधारक उनमेंसे यह दुर्गुण भी हटानेका प्रयत्न कर रहे हैं।

गोरे जो-कुछ करते हैं, सो करें। परन्तु यह हमारे लिए सम्भव नहीं है। हम बहुत गिरी हुई हालतमें हैं। हमें उससे ऊपर उठना है। इसलिए हमें बहुत अधिक साहसकी जरूरत है। यह तो स्पष्ट नियम प्रतीत होता है कि जिस समाजमें व्यभिचार बढ़ जाता है। वह समाज दिनोदिन क्षीण होता जाता है। इसलिए तरुण भारतीयोंको यह बात अच्छी तरह ध्यान में रखनी चाहिए।

गोरोंकी बराबरी करते समय हम यह देखते हैं कि उनमें ब्रह्मचर्य-मण्डलोंकी स्थापना होती है। उनके पादरी तरुणोंको भटकनेसे रोकनेका प्रयत्न करते हैं। बम्बईमें मुक्ति सेना (साल्वेशन आर्मी) इसका बड़ा प्रयत्न कर रही है, यह बात हम जानते हैं। केपमें, आरेंज रिवर उपनिवेशमें तथा ट्रान्सवालमें रेवरेंड श्री मायर अंग्रेज युवकोंको यह सब ज्ञान दे रहे हैं। इन मण्डलोंमें पैसेकी जरूरत नहीं होती। केवल निष्ठावान्, सद्विचारी और सदाचारी मनुष्य उनमें लिये जाते हैं। याद रखना चाहिए कि रोम, ग्रीस और अन्य राज्योंका नाश मुख्यतया व्यभिचारके कारण ही हुआ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २०-६-१९०८

१७३. केपके भारतीयोंके सम्बन्धमें कानून

केपी संसदका अधिवेशन हो रहा है। केपमें प्रवास सम्बन्धी कानून और व्यापार सम्बन्धी कानून अन्यायपूर्ण हैं। इस सम्बन्धमें केपके भारतीयोंको न्याय प्राप्त करना जितना आसान है अन्य उपनिवेशोंके भारतीयोंको वह उतना आसान नहीं है, क्योंकि केपके भारतीयोंको मताधिकार प्राप्त है। काफी प्रयत्न किया जाये तो इन दोनों कानूनोंमें परिवर्तन करवाया जा सकता है। प्रवास-सम्बन्धी कानून फिर 'गजट' में प्रकाशित हुआ है। उसकी कई शर्तें ऐसी हैं जिन्हें पूरा करना मुश्किल होगा। उसका विरोध करना केपके भारतीयोंका कर्तव्य है। वही बात व्यापारिक परवानोंसे सम्बन्धित कानूनके बारेमें है। यदि भारतीय समाज दक्षिण आफ्रिकामें आदर-सम्मानके साथ रहना चाहता है तो उसको बहुत कष्ट उठाने होंगे। राजकीय कष्ट दूर करनेके लिए [ स्वेच्छासे ][१] कष्ट सहना होगा। और यदि हम ऐसी ही अज्ञानपूर्ण अधम

 
  1. मूलमें यहाँ एक शब्द ठीक पढ़ा नहीं जाता।