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जोहानिसबर्गमें एक कीर्ति-स्तम्भ

स्थितिमें रहना चाहते हों तो हमें राजकीय अत्याचार सहने होंगे। जीवित रहने के लिए मरना आवश्यक है। अधिकार प्राप्त करनेके लिए कर्तव्य पूरा करना होता है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २०-६-१९०८

१७४. जोहानिसबर्गमें एक कीर्ति स्तम्भ

हमने अपने आजके अंकके साथ जोहानिसबर्गमें निर्मित एक कीर्ति-स्तम्भ के चित्र परिशिष्टके रूपमें दिये हैं। यह स्तम्भ बोअर युद्धके अन्तमें सार्वजनिक चन्देसे बनाया गया था। सारे दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी कीर्तिकी स्मृतिकी फिलहाल यह एक ही निशानी है।

स्तम्भका पहला चित्र नजदीकसे लिया गया है और उसमें स्तम्भके ऊपर लिखा हुआ लेख दिखाई देता है। दूसरा चित्र स्तम्भ तथा उसके आसपासकी जगहके दृश्यको स्पष्ट करता है। उससे यह भी जाहिर हो जाता है कि स्तम्भकी स्थापना कुछ ऊँची जगहपर की गई है। उससे दूर जो सरहद दिखाई पड़ती है वह सर जॉर्ज फेरारके खेतोंकी है।

स्तम्भका निर्माण छाँटे हुए पत्थरोंको सीमेंटसे जोड़कर किया गया है। उसके आसपास लोहे की छड़ोंसे बाड़ बना दी गई है, जिससे उसपर लगे हुए संगमरमरपर अंकित लेखको कोई खराब न करे। यह स्तम्भ जोहानिसबर्ग की ऑब्जरवेटरी (हवाकी स्थिति आदिके शास्त्रसे सम्बन्धित बातोंकी जाँच करनेवाले विभाग) के पास बनाया गया है। इस प्रकार वह जोहानिसबर्गके सबसे ऊँचे टीलेपर बना हुआ है। यह सब लोगोंके संगठित प्रयत्नोंका परिणाम है।

स्तम्भकी पूर्वी बाजूपर एक सफेद संगमरमरकी बड़ी पटियापर निम्नलिखित लेख है:

१८९९ से १९०२ की अवधिमें दक्षिण आफ्रिकाकी युद्ध-भूमिपर वीरगति पानेवाले ब्रिटिश अमलदारों, अन्य पदाधिकारियों, अधिकारियों तथा भारतीय सिपाहियोंकी पवित्र स्मृति में।

उपर्युक्त लेख हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषामें खुदा हुआ है। इस स्तम्भकी अन्य तीन बाजुओंपर एक-एक संगमरमरका टुकड़ा लगाया गया है और उनपर क्रमशः नीचेके शब्द खुदे हुए हैं: मुसलमान; ईसाई-पारसी; हिन्दू-सिक्ख।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन२०-६-१९०८