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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(घ) वे एशियाई जिनके दावे श्री चैमने द्वारा अस्वीकृत कर दिये गये हैं। (इन एशियाइयोंके पक्षमें सिर्फ इतना ही कहा गया है कि उन्हें अपने उन दावोंकी जाँच न्यायाधिकरण द्वारा करानेके हक प्राप्त होने चाहिए और ऐसे दावोंका आखिरी फैसला किसी प्रशासकीय अधिकारी द्वारा न कराया जाये)।

इन दावोंपर विचार करने और उन्हें न्यायाधिकरणके सुपुर्द करने, न कि ज्योंका-त्यों मान लेने की माँगको ठुकराकर जनरल स्मट्सने प्रकट कर दिया है कि उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोधका आशय गलत समझा है। यह आन्दोलन किसी व्यक्तिगत स्वार्थके कारण नहीं, बल्कि सभी एशियाइयोंके, मैं तो कहना चाहूँगा कि साम्राज्यके भी, फायदेके लिए चलाया गया था। इसके अतिरिक्त, उपनिवेशकी एशियाई आबादीमें ज्यादासे-ज्यादा दो हजार एशियाइयोंकी सम्भाव्य वृद्धिको घटित न होने देनेकी गरजसे, उन्होंने पूरे समझौतेका ध्वंस कर दिया है। मैंने इन लोगोंके वर्णनमें "वृद्धि" शब्दका उपयोग किया है। किन्तु वास्तवमें तो ये उपनिवेशके अधिवासी ही हैं, यद्यपि जनरल स्मट्सके मसविदेमें उनके अधिकारोंकी उपेक्षा की गई है।

एशियाई लोगों की स्थिति सीधी है। इस मामलेमें उन्हें वही परिस्थिति पुनः स्वीकार कर लेनी चाहिए, जो गत जनवरी मासमें उपस्थित थी और उन्हें यह परामर्श दिया गया है कि वे अपने स्वेच्छया पंजीयन-सम्बन्धी प्रार्थनापत्र वापस ले लें।[१] जनरल स्मट्सने उन्हें वापस देने से इनकार कर दिया है। अगर उनमें सत्याग्रहियोंका मुकाबिला करनेका साहस होता, तो वे प्रार्थनापत्रोंको बिना किसी कठिनाईके वापस कर देते।

भारतीय लोग गत जनवरी तक शंकाओंके शिकार बने रहे। श्री डंकनने यह अभियोग लगाया था और बड़ी-बड़ी जगहोंमें वह दुहराया गया कि एशियाई लोग संगठित रूपसे अवैध प्रवेश कर रहे हैं।[२] इस तथ्य से कि ९,००० में से ७,६०० से ऊपर एशियाइयोंने अपने प्रवेशकी प्रामाणिकताको सिद्ध कर दिया है, उपर्युक्त आरोपकी निरर्थकता प्रकट होती है। इस गति आरोपका खण्डन करनेके लिए ही, न कि अन्य किसी कारणसे, स्वेच्छया पंजीयनका प्रस्ताव सामने लाया गया था। अतएव, एशियाई लोगोंके मनमें यह खयाल ही नहीं है कि उनसे कोई दोष हो गया है और वे जनताके सामने निःसंकोच भावसे पेश हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त, कष्टोंको सहन करके उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि उन्हें सहृदय जनतासे सहानुभूति पानेका अधिकार है।

अन्तमें, उनके कुछ नेताओंका उनके देशवासियोंके ही द्वारा बुरी तरह मारा-पीटा जाना, यह सिद्ध करता है कि वे सरकारकी सेवाके लिए उतने ही उत्सुक हैं जितने अपने देशवासियोंकी सेवाके लिए।

जनरल स्मट्सका यह अधिनियम सरकारका अधिनियम होगा और सरकारका अधिनियम गोरे लोगोंका---अधिकांशतः ब्रिटिश लोगोंका--- अधिनियम होगा। जब मैंने अपने देशवासियोंको समझौतेका स्वरूप समझाया, तब उनमें से कम विचारशील व्यक्तियोंने कहा: "गोरोंका विश्वास मत करो। उस अधिनियमका रद किया जाना स्वेच्छया पंजीयनके पूर्व होना चाहिए, न कि बादको।" मैंने उनसे कहा कि ऐसा करना हमारे लिए गौरवपूर्ण न होगा।

 
  1. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ २५८-६१।
  2. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ २२१-२२।