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१७९. भेंट 'स्टार ' को[१]

[प्रिटोरिया,
जून २२, १९०८]

हमें यह घोषणा करते हुए खेद होता है कि गत जनवरीमें सरकार और ट्रान्सवाल-वासी एशियाइयोंके बीच जो समझौता हुआ था, उसको भंग होनेसे बचानेके सब प्रयत्न असफल सिद्ध हुए हैं...।

उपनिवेश सचिवके अनुरोधपर, श्री गांधी आज प्रातः उनसे मिले और उन्होंने श्री गांधीको सरकार द्वारा प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियममें प्रस्तावित संशोधनका मसविदा पढ़नेकी अनुमति दे दी। जनरल स्मट्सने सूचना दी कि सरकार एशियाई पंजीयन अधिनियमको रद करना चाहती है।

श्री गांधीने अधिनियमको पढ़नेके बाद उपनिवेश-सचिवसे भेंट की और निम्न मुद्दे उठाये: (क) उन एशियाइयोंकी स्थिति, जिन्होंने अपनी अँगुलियोंकी छाप देनेके बाद पंजीयनका स्वेच्छया प्रार्थनापत्र दिया था और जिन्हें किसी-न-किसी कारणसे उनका अनुमतिपत्र नहीं मिला। श्री गांधीने माँगकी कि जिन लोगोंको अनुमतिपत्र देनेसे इनकार कर दिया गया है, उनको एशियाई पंजीयकके निर्णयपर किसी न्यायाधिकारीके यहाँ अपील करनेका अधिकार होना चाहिए। (ख) उन्होंने यह माँग भी की कि दक्षिण आफ्रिकाके बाहरके उन भारतीयोंको, जिनके पास ३ पौंडी पंजीयन शुल्कके बदले गणतन्त्री सरकार द्वारा जारी किये गये अधिवासके प्रमाणपत्र हैं, भारतसे लौटनेपर स्वेच्छया पंजीयन करानेकी अनुमति दे दी जानी चाहिए। (ग) शिक्षा-सम्बन्धी छूट पुराने कानूनकी तरह नये कानूनमें भी कायम रखी जानी चाहिए। (घ) युद्धसे पहले ट्रान्सवालमें रहनेवाले वास्तविक शरणार्थियोंको, जो अब भारतमें या अन्यत्र हैं और जिनके पास गणतन्त्री सरकारके प्रमाणपत्र हैं या नहीं हैं, प्रमाण देनेके पश्चात् वापस लौटने और स्वेच्छया पंजीयन कराने की अनुमति दे दी जाये।

शिक्षा-सम्बन्धी छूटके बारेमें, जनरल स्मट्सका तर्क यह था कि उनको मूल कानूनके अन्तर्गत कोई छूट प्राप्त नहीं है। उन्होंने उन मामलोंमें, जिनमें स्वेच्छया पंजीयनसे इनकार कर दिया गया था, एशियाई पंजीयकके निर्णयके विरुद्ध अपीलकी व्यवस्था करना अस्वीकृत कर दिया। उन्होंने उन एशियाइयोंको, जो इस समय देशसे बाहर हैं, जो वास्तविक शरणार्थी हैं या जिनके पास गणतन्त्रके अधिवास-सम्बन्धी प्रमाणपत्र हैं, लौटनेकी सुविधाएँ देनेसे भी इनकार कर दिया।

यह भेंट संक्षिप्त भेंट थी और हमें मालूम हुआ है कि उपनिवेश-सचिवने श्री गांधीको यह सूचित किया है कि यदि वे भारतीय समाजके नेताके रूपमें प्रवासी-प्रतिबन्धक विधेयकमें

 
  1. यह इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित किया गया था और इसका शीर्षक था: "ट्रान्सवालका संकट: जनरल स्मट्स द्वारा धोखेबाजी" ।