प्रस्तावित संशोधनको स्वीकार करनेके लिए तैयार हों तो एशियाई संशोधन अधिनियम वापस ले लिया जायेगा। उपनिवेश सचिव वर्तमान पंजीयन अधिनियममें पंजीयनको कानूनी बनानेके लिए एक विधेयक प्रस्तुत करेंगे।[१]
श्री गांधी तब चले आये; और उन्होंने एक भेंटमें इस पत्रके प्रतिनिधिको उक्त वक्तव्य प्रकाशित करनेका अधिकार दे दिया। उन्होंने कहा कि वे तुरन्त सर्वोच्च न्यायालयके सम्मुख एक ऐसी आज्ञाके लिए प्रार्थनापत्र देंगे जिसमें श्री चमने (पंजीयक) से कहा जायेगा कि वे एशियाइयों द्वारा स्वेच्छया दिये गये अँगुलियोंके निशानों और दूसरे कागजों को लौटा दें।[२]
इंडियन ओपिनियन, २७-६-१९०८
१८०. भेंट: 'ट्रान्सवाल लीडर' को
[जोहानिसबर्ग
जून २२, १९०८]
कल रात्रिको श्री गांधीसे 'ट्रान्सवाल लीडर' के एक प्रतिनिधिने मुलाकात की। श्री गांधीने, यह पूछा जानेपर कि अब किस मार्गका अनुसरण करनेका इरादा है, कहा:
समझौतेकी बातचीतके दौरान भारतीय समाजके नेताओं तथा निस्सन्देह भारतीय समाजको भी, जो कुछ होता रहा है, उससे बराबर अवगत कराया जाता रहा है। इसलिए जनरल स्मट्सका फैसला यद्यपि उनके सामने एक दुःखद आश्चर्यके रूपमें आया है, तथापि बिलकुल अचानक आया हो, सो बात नहीं है। जब यह बात पहले-पहल ज्ञात हुई कि अधिनियमके रद किये जानेकी कोई सम्भावना नहीं है, तब बहुत-से भारतीयोंने श्री चैमनेको लिखा कि वे
- ↑ इंडियन ओपिनियनमें जनरल स्मट्सके वक्तव्यका निम्न विवरण प्रकाशित हुआ था: "श्री गांधीके वक्तव्यके सम्बन्धमें, हमें उपनिवेश-सचिवका इस आशयका वक्तव्य मिला है कि एशियाई कानून संशोधन अधिनियमकी वापसी इस समझौतेका अंग नहीं है, जैसाकि उन पत्रोंसे, जिनमें समझौता दिया गया है, प्रत्यक्ष है। उपनिवेश- सचिव भारतीय समाजकी बात मानने और १९०७ के अधिनियम २ को वापस लेने और भविष्यमें ट्रान्सवाल आनेवाले भारतीयोंको प्रवासी-अधिनियमके अन्तर्गत निषिद्ध भारतीय माननेके लिए तैयार हैं, बशर्ते कि एशियाई समाजके नेता अधिनियमके उस संशोधनको, जिसे उपनिवेश-सचिव करना चाहते हैं, स्वीकार कर लें। ये प्रस्तावित संशोधन श्री गांधीके सम्मुख प्रस्तुत किये गये थे और उन्हें उनसे, विविध कारणोंसे, जो उन्होंने बताये, बिलकुल सन्तोष नहीं हुआ। इसलिए उन्हें सूचित कर दिया गया कि समझौतेकी सम्मत शर्तोंको माननेके सिवा अब कुछ करना बाकी नहीं रहा, क्योंकि उपनिवेश-सचिव १९०७ के अधिनियम २ को रद करने और फिर प्रवासी- अधिनियमके विरुद्ध नया आन्दोलन आरम्भ होता देखनेके लिए तैयार नहीं हैं। समझौतेके अनुसार स्वेच्छया पंजीयन १९०७ के अधिनियम २ के अन्तर्गत वैध नहीं किया जायेगा, बल्कि एक पृथक कानूनके अन्तर्गत किया जायेगा।"
- ↑ इंडियन ओपिनियनके इसी अंकमें यह खबर दी गई थी कि श्री इब्राहीम अस्वातने सर्वोच्च न्यायालयमें स्वेच्छया पंजीयनके प्रार्थनापत्रको लौटानेकी दरख्वास्त दी है और ईसप इस्माइल मियाँ और श्री मो० क० गांधीके हलफिया बयानोंसे (पृष्ठ ३०५-०७) उसका समर्थन किया है। दरख्वास्तकी सुनवाई शुक्रवार ३ जुलाईको ११ बजे होनी निश्चित हुई है।