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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्हें उनकी अर्जियाँ और वे सारे दस्तावेज लौटा दें, जो उनके द्वारा उनके समक्ष स्वेच्छापूर्वक प्रस्तुत किये गये थे। ये दस्तावेज वापस नहीं किये गये हैं। सर्वोच्च न्यायालयके पास फौरन ही आवेदनपत्र भेजा जायेगा, और अगर वे दस्तावेज लौटा दिये गये तो भारतीय समाज तत्क्षण उसी स्थितिमें पहुँच जायेगा जो समझौतेके पूर्व थी। दूसरे शब्दोंमें, एशियाई अधिनियमके अन्तर्गत पंजीयन न करानेके अपराधमें प्रत्येक भारतीयपर मुकदमा चलाया जा सकेगा। परन्तु यदि यह कदम असफल रहा, तो भी, जहाँतक मुझे मालूम है, एशियाइयोंका यह मंशा नहीं है कि वे स्वेच्छया पंजीयनको मनमाने ढंगसे कानूनी रूप दे देने दें।

प्रिटोरियासे मेरी वापसीके शीघ्र बाद समितिकी एक बैठक हुई थी। उसमें सदस्योंने बहुत उत्साह प्रदर्शित किया। उनकी समझमें आ गया कि अनाक्रामक प्रतिरोधका आन्दोलन आदिसे अन्ततक फिरसे दोहराना होगा, और वे मुझे इसके लिए तैयार दीख पड़ रहे हैं।

हम लोग अगले बुधवारको ३ बजे दिनके समय हमीदिया मस्जिदके सामने समस्त उपनिवेशमें बसनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंकी आम सभा करने जा रहे हैं।[१] प्रतिनिधियोंको उपनिवेशके प्रत्येक भागसे तार द्वारा निमन्त्रित किया गया है। सभामें अनेक प्रस्ताव पास किये जायेंगे।

मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि कानूनको रद करनेकी बात मान लेनेके बाद मेरे उन सुझावोंको माननेसे इनकार करके, जिन्हें मैं बहुत ही नरम और न्यायसंगत मानता हूँ, जनरल स्मट्सने बड़ा अनुचित कार्य किया है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २७-६-१९०८

१८१. पत्र: एम० चैमनेको

जोहानिसबर्ग,
[ जून २३, १९०८ के पूर्व ][२]

श्री एम० चैमने
उपनिवेश-कार्यालय
प्रिटोरिया
प्रिय महोदय,

मुझे ब्रिटिश भारतीय संघने सूचित किया है कि मैंने जो स्वेच्छया पंजीयनपत्र लिया है, सरकार १९०७ के एशियाई अधिनियम सं० २ के अन्तर्गत उसका वैधीकरण करना चाहती है। चूँकि, मैंने जब सरकारके साथ किये गये समझौतेको स्वीकार किया था, तब मेरा इरादा एशियाई कानूनके अन्तर्गत इसके वैधीकरणको स्वीकार करने का कदापि न था,

 
  1. देखिए "भाषण: सार्वजनिक सभायें", पृष्ठ ३११-१४।
  2. स्पष्ट है कि यह पत्र अगले शीर्षकसे पूर्व लिखा गया था, क्योंकि उसमें इस पत्रका जिक्र है। यह सम्भव है कि गांधीजीने इस पत्र और सर्वोच्च न्यायालयको श्री अस्वातकी ओरसे दिये गये प्रार्थनापत्र--दोनोंका मसविदा लिखा हो। श्री अस्वात कुछ समय तक ब्रिटिश भारतीय संघके पदाधिकारी रहे थे।