पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/३४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(ग) एशियाइयोंके समझौतेके अनुसार अपना कर्तव्य पूरा करते ही सरकार एशियाई अधिनियमको रद कर देगी, और स्वेच्छया पंजीयन करानेवालोंपर एशियाई पंजीयन अधिनियम किसी भी तरह लागू न होगा।

(६) जहाँतक मैं जानता हूँ, अधिकांश भारतीयोंने स्वेच्छया पंजीयनकी अर्जी दे दी है।

(७) उपर्युक्त आश्वासनोंके आधारपर मैंने श्री चैमनेको साथ भेजे जा रहे फार्मके[१] अनुसार, मार्च, १९०८ में अर्जी दी थी। इस अर्जीमें मैंने अपनी सही की थी और अपनी अँगुलियोंकी छाप लगाई थी।

(८) मैंने तथा दूसरे सैकड़ों भारतीयोंने इस तरह अर्जीकी सारी शर्ते पूरी कीं और समझौता होनेपर कुछ भारतीयोंमें जो असन्तोष पैदा हुआ था उसके कारण ऐसा करनेमें निहित जोखिमकी परवाह नहीं की।

(९) समझौतेका भारतीयोंसे सम्बन्धित हिस्सा कार्यान्वित करनेमें मैंने सरकारकी भरसक सहायता की।

(१०) अब ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षने मुझे सूचित किया है कि उक्त कानूनको रद करनेवाला विधेयक पेश करनेका सरकारका कोई इरादा नहीं है, और न वह उपनिवेशके बाहरके एशियाइयोंको स्वेच्छया पंजीयन करानेकी सुविधा ही देना चाहती है।

(११) इन कारणोंसे अब स्वेच्छया पंजीयनका प्रमाणपत्र लेनेका मेरा इरादा नहीं है और मैंने श्री चैमनेसे यह माँग की है कि वे मेरी उपर्युक्त अर्जी तथा शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अनुसार प्राप्त मेरा अनुमतिपत्र और १८८५ के कानूनके अनुसार प्राप्त पंजीयन प्रमाणपत्र, जो अर्जी करते समय मैंने उन्हें दिये थे, मुझे वापस कर दें।

(१२) श्री चैमनेने मेरी उपर्युक्त अर्जी और दूसरे दस्तावेज वापस नहीं किये हैं।

(१३) मैंने पंजीयनके लिए जो अर्जी की थी वह एशियाई अधिनियम संशोधन कानूनके अन्तर्गत नहीं की थी; बल्कि स्वेच्छा से की थी।

(१४) अर्जियाँ लेनेका सरकार द्वारा नियत किया गया अन्तिम दिन ३० नवम्बर, १९०७ था। यह बात १ नवम्बरका सरकारी 'गजट' देखनेसे मालूम हो जायेगी।

(१५) उपर्युक्त अर्जीके अनुसार मुझे जो पंजीयन प्रमाणपत्र मिलना चाहिए था, वह मुझे मिला नहीं है और ऊपर वर्णित परिस्थितिमें अब पंजीयन प्रमाणपत्र लेनेकी मेरी इच्छा भी नहीं है।

(१६) इसलिए मैं प्रार्थना करता हूँ कि न्यायालय श्री चैमनेको मेरी अर्जी वापस करनेका हुक्म दे; या उसे जो उचित जान पड़े, दूसरी राहत दिलवाये।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-७-१९०८
 
  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।