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१८३. ईसप मियाँका हलफनामा[१]

जोहानिसबर्ग
जून २३, १९०८

मैं, जोहानिसबर्गका ईसप इस्माइल मियाँ, व्यापारी, शपथपूर्वक और ईमानदारीके साथ घोषित करता हूँ:

१. मैं जोहानिसबर्गकी सुलेमान इस्माइल मियाँ व कम्पनीकी पेढ़ीका व्यवस्थापक साझेदार और ब्रिटिश भारतीय संघका अध्यक्ष हूँ।

२. मैंने वेरीनिगिंगके इब्राहीम इस्माइल अस्वातकी २३ जून, १९०८ की अर्जी[२] पढ़ ली है।

३. उक्त अर्जीमें ब्रिटिश भारतीय संघकी जिन बहुतेरी सभाओंका उल्लेख हुआ है, उनकी अध्यक्षता मैंने की थी और उनमें से कुछमें कई हजार भारतीय उपस्थित थे।

४. संघके अवैतनिक मन्त्री जोहानिसबर्गके श्री मो० क० गांधीने संघको यह सूचना दी है कि शायद सरकार १९०७ के एशियाई अधिनियम २ को रद नहीं करेगी, इसलिए संघने सारे ब्रिटिश भारतीयोंको पंजीयन करानेके लिए स्वेच्छया दी गई अपनी अर्जियाँ और प्रिटोरियाके मॉटफोर्ड चैमनेको सौंपे गये दूसरे दस्तावेज वापस ले लेनेकी सलाह देनेका निर्णय किया है।

५. मैंने भी अपनी दरख्वास्त और दस्तावेज लौटानेके लिए अर्जी की है, लेकिन वे अभीतक लौटाये नहीं गये हैं।

६. उक्त अर्जीमें उल्लिखित समझौतेकी शर्तोके भारतीयोंसे सम्बन्धित हिस्सेका पालन करानेमें मैंने और मेरे देशवासियोंने काफी व्यक्तिगत जोखिम उठाकर सरकारकी मदद की थी।

७. ऐसा करनेके कारण पिछली मईकी १७ तारीखको कुछ लोगोंने मेरे ऊपर हमला किया और मुझे काफी मारा-पीटा। यह मार-पीट इतनी ज्यादा थी कि करीब १५ दिनतक मुझे बिस्तरपर पड़े रहना पड़ा और मेरी नाक टूटते टूटते बच गई।

[ ईसप इस्माइल मियाँ ]

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-७-१९०८
 
  1. सम्भवतः इसका मसविदा गांधीजीने ही बनाया था।
  2. देखिए पिछला शीर्षक।
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