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हलफनामा

दिया जायेगा। उसी समय पूर्वोक्त पत्रका एक औपचारिक उत्तर मुझे दिया गया जिसकी एक नकल साथमें नत्थी की जाती है।

९. उक्त मुलाकातके बाद मुझे और मेरे साथी बन्दियोंको रिहा कर दिया गया।

१०. फरवरी ३ को उपनिवेश सचिवसे मेरी फिर मुलाकात हुई जिसमें अधिनियम रद करनेके सम्बन्धमें तथा अन्य विषयोंपर बातचीत हुई और मुझे दिया गया पूर्वोक्त वचन दुहराया गया। हाँ, उक्त मुलाकातके समाप्त होनेपर जब मैं चलनेको हुआ तब उपनिवेश-सचिवने यह, या कुछ इसी आशयकी बात कही थी कि "याद रखिए यदि एक भी अड़ियल एशियाई ऐसा हुआ जिसने स्वेच्छया पंजीयन नहीं कराया तो मैं उस व्यक्तिपर अधिनियम लागू कर दूँगा।" मैंने इन शब्दोंका यह मतलब समझा कि अधिनियम रद करानेके लिए उपनिवेशके तत्कालीन अधिवासी एशियाइयोंकी बहुत बड़ी संख्याको स्वेच्छया पंजीयन कराना पड़ेगा।

११. उसके बाद उपनिवेश सचिव और मेरे बीच पत्र-व्यवहार हुआ और उसमें अधिनियमको रद करनेकी बात पक्की हुई।

१२. किन्तु मुझे उपनिवेश सचिवके निजी-सचिवके हस्ताक्षरोंसे युक्त इस आशयका एक पत्र[१] देखकर आश्चर्य हुआ जिसमें लिखा था कि स्वेच्छया पंजीयन करानेवालोंपर भी उक्त अधिनियम लागू किया जायेगा।

१३. उसके बाद मैंने इस बातका निश्चित पता लगा लिया है कि सरकारका इरादा उक्त अधिनियमको उन लोगोंपर लागू करनेका नहीं है जिन्होंने स्वेच्छया पंजीयन करा लिया है। किन्तु वह अधिनियमको रद करनेके सम्बन्धमें कोई आश्वासन देने से इनकार करती है।

१४. इस समाचारसे एशियाइयोंमें बड़ी खलबली मच गई है और उन्होंने माँग की है कि पंजीयनके लिए प्रिटोरियाके मॉटफोर्ड चैमनेको उन्होंने स्वेच्छापूर्वक जो प्रार्थनापत्र और कागजात दिये थे वे वापस कर दिये जायें।

१५. जब समझौतेकी विधि पूरी हुई तो भारतीय समाजका एक वर्ग-विशेष इस कारण असन्तुष्ट हो गया था कि मैंने उस कालमें हुई सार्वजनिक सभाओं में प्राप्त अधिकारके अन्तर्गत अँगुलियोंके निशान द्वारा अपनी शिनाख्त देनेके सिद्धान्तको स्वीकार कर लिया था। और जब सरकारके साथ हुए समझौतेपर अमल करनेकी इच्छासे अपना प्रार्थनापत्र देनेके लिए मैं गत फरवरी १० (सोमवार) को मॉटफोर्ड चैमनके पास गया उस समय समझौतेसे असन्तुष्ट लोगोंने मुझे बुरी तरह मारा।

१६. मैं जानता हूँ कि समझौतेपर अमल करने तथा सरकारको सहायता पहुँचाने के प्रयत्न में बहुत-से भारतीयोंको बड़ी असुविधाएँ और जबर्दस्त खतरे झेलने पड़े।

१७. एशियाइयोंकी बहुत बड़ी संख्याने स्वेच्छया पंजीयनको स्वीकार किया है।

[ मो० क० गांधी ]

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-७-१९०८
 
  1. केनका १३ मई, १९०८ का पत्र देखिए (एस० एन० ४८१२) ।