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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

सारी कार्रवाई बन्द हो गई। जनरल स्मट्स कहते हैं, "चूँकि आप यह विधेयक पसन्द नहीं करते, इसलिए यह कानून रद नहीं किया जा सकता। और, हमें जिस तरह ठीक लगेगा हम स्वेच्छया पंजीयनको वैध करेंगे।" श्री गांधीने फिरसे अपना स्वेच्छया पंजीयनका प्रार्थनापत्र वापस माँगा। श्री स्मट्सने कहा, "उसके लिए अदालतमें लड़िए।" प्रिटोरियाके भारतीयोंको तुरन्त ही यह बात बताई गई और जोहानिसबर्गमें समितिकी बैठक बुलानेके लिए तार[१] किया गया।

सोमवारकी शामको पाँच बजे सभा हुई। सभामें बड़ा उत्साह दिखाया गया। सभीने 'मारेंगे या मरेंगे'---वाला साहस दिखाया और संघर्ष शुरू करनेका निश्चय किया। प्रार्थनापत्र वापस लेनेके बारेमें मुकदमा चलाना तय हुआ। बुधवारके दिन सार्वजनिक सभा[२] करना निश्चित हुआ और मंगलवारको सार्वजनिक सभाके बारेमें तार दिये गये।

गोरे मित्र

सर्वश्री हाँस्केन, कार्टराइट, स्टेंट आदिने मदद करनेका वचन दिया। 'लीडर' में श्री गांधीके साथ की गई एक भेंट[३] भी छपी। और सारे समाचारपत्रोंको श्री गांधीने एक पत्र लिखा। यह पत्र आजके अखबारोंमें प्रकाशित हुआ है। वह नीचे लिखे अनुसार है:[४]

रायटरने अपना तार विलायत भेजा है। और कौम यदि ऐसा ही जोर लगाती रही, तो कानून जरूर टूटेगा और ऊपरके चार अधिकार जरूर मिलेंगे; हम इन दोनों बातोंके हकदार हैं। हमारा हक सच्चा है। सच्चा पार उतरता है, यह जगतका न्याय है।

अस्वातका हलफनामा

प्रार्थनापत्र वापस लेनेके बारेमें सर्वोच्च न्यायालयमें मामला श्री अस्वातकी ओरसे दायर किया जायेगा। यदि श्री अस्वात और श्री सोराबजी दोनोंके मामले सफल हुए तो संघर्ष संक्षिप्त हो जायेगा।

नहीं तो फिर क्या?

यदि ये दोनों मुकदमे अनुकूल नहीं निकलते तो भी क्या हुआ? उससे भी हार नहीं माननी चाहिए। सच्चा सर्वोच्च न्यायालय तो अपना हृदय है। सबका सच्चा न्यायाधीश खुदा है। उसपर भरोसा रखकर तदबीर करें, तो तकदीर भी साथ नहीं छोड़ेगी। इसलिए यदि इन दोनों मामलोंका फल उलटा निकले, तो उससे किसीको तनिक भी डरनेकी जरूरत नहीं है। जबतक हमारी हिम्मत बनी है, तबतक सब ठीक ही होगा। सत्याग्रहके संघर्षका आधार सत्याग्रहीके ऊपर होता है, न कि दूसरे व्यक्तियोंके ऊपर।

परीक्षात्मक मुकदमा

जनरल स्मट्स कहते हैं कि शिक्षितोंके अधिकारकी रक्षा प्रवासी अधिनियममें भी नहीं होती। यदि यह बात ठीक हो, तो हमें कुछ भी कहने को नहीं बच रहता और हम जीत नहीं

 
  1. देखिए "तार: जोहानिसबर्ग कार्यालयको", पृष्ठ २९६।
  2. गांधीजीके भाषणके लिए देखिए "भाषण: सार्वजनिक सभामें", पृष्ठ ३११-४; सभामें जो प्रस्ताव स्वीकृत हुए उनके लिए देखिए परिशिष्ट ५।
  3. देखिए "भेंट: 'ट्रान्सवाल लीडर' को", पृष्ठ ३०१-०२।
  4. यह पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। मूलके लिए देखिए "पत्र: अखबारोंको", पृष्ठ २९७ ९९।