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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जनरल स्मट्स कहते हैं कि अधिनियमको रद करनेके बारेमें उन्होंने कभी कोई वादा नहीं किया। परन्तु संसारके सामने ऐसे कागजात आयेंगे, जिनसे कमसे-कम इतना तो अवश्य प्रकट होगा कि अधिनियमके रद करनेके बारेमें कुछ वार्तालाप, कुछ परामर्श हुआ था। इस बातके गवाह भी हैं, परन्तु, अध्यक्ष महोदयने ठीक ही कहा है कि इसके निर्णयका काम वकीलोंका है।[१] भारतीय समाज केवल इतना जानता है कि अधिनियमका रद होना लक्ष्य था और स्वेच्छया पंजीयनके द्वारा इसे प्राप्त करना ही उनका उद्देश्य था। परन्तु आज भारतीय समाज देखता है कि स्वेच्छया पंजीयनसे उद्देश्यकी पूर्ति नहीं हुई। समाज यह भी देखता है कि फिरसे यह महती सभा बुलाना आवश्यक हो गया है; और कदाचित् यह भी आवश्यक हो गया है कि यदि ईश्वरकी यही इच्छा है, तो फिरसे उन्हीं या उनसे भी अधिक तीव्र कष्टोंके बीचसे गुजरा जाये।

इसलिए यदि हवामें सनसनी जान पड़ती है तो मैं स्वीकार करता हूँ कि अपराधी मैं हूँ। इसका उत्तरदायित्व मुझपर है, क्योंकि मैंने जनरल स्मट्सकी राजनीतिज्ञता, उनकी ईमानदारी और खरेपनपर बहुत-बड़ा भरोसा किया था। यदि आज मेरे देशवासी सोचते हैं कि मैंने उन्हें बेच दिया तो उनके पास ऐसा विश्वास करनेका खासा कारण है; यद्यपि स्वयं मेरी रायमें इसका कोई औचित्य नहीं है। वे तो जो परिणाम निकले हैं, उन्हींसे मुझे परख सकते हैं। आजका संसार ऐसा ही बना है कि उसमें लोगोंकी परख उनके अपने अंगीकृत इरादोंसे नहीं, बल्कि उनके कामोंके परिणामसे की जाती है। और वे मेरी परख मेरे कार्योके परिणामसे, सम्पूर्ण भारतीय समुदायपर अकारण समझौता लाद देनेके परिणामसे, करते हैं। इसमें मैं चीनी समुदायको भी शामिल करता हूँ, क्योंकि यद्यपि जनरल स्मट्सको जो पत्र भेजा गया था उसपर हस्ताक्षर करनेवाले दो और सज्जन थे, परन्तु उन्होंने स्वयं मेरी नेकनीयतीपर पूरा भरोसा करते हुए ऐसा किया था। उन्हें पूरा विश्वास था कि मैं जो कर रहा हूँ, वह वही है, जिसके लिए वे सब प्रयत्नशील हैं। अर्थात्, केवल शब्दोंमें ही नहीं बल्कि व्यवहारमें अधिनियम रद किया जाना, और निश्चय ही उसका संशोधित संस्करण प्राप्त करना नहीं, बल्कि उस कानूनको तथा उसके समस्त परिणामोंको समाप्त करवाना---बशर्ते कि भारतीय समुदाय और चीनी समुदाय स्वेच्छया पंजीयनके द्वारा यह सिद्ध कर दें कि इनपर बिना किसी कानूनी प्रतिबन्धके विश्वास किया जा सकता है। निस्सन्देह उनका विश्वास था कि यदि वे यह सिद्ध कर सकें कि एशियाइयोंका भारी बहुमत ट्रान्सवालमें पूर्ण अधिकारके साथ आया है, उसके पास जो कागजात हैं वे सही हैं, समुचित रूपसे प्राप्त किये गये हैं और जाली नहीं हैं, तो यह अधिनियम रद हो जायेगा; और उनकी स्थिति एशियाई अधिनियमके अन्तर्गत जैसी रही है उससे कहीं अधिक अच्छी हो जायेगी। उनका यह भी विश्वास था कि उन्होंने १६ महीनों तक अधिनियमकी नाममात्रकी वापसीके लिए संघर्ष नहीं किया, बल्कि इसलिए किया था कि वे भी मानव-प्राणी समझे जायें, स्वयं उनके

 
  1. अध्यक्षका कथन था: "हम जेल गये थे आत्माकी स्वतन्त्रता प्राप्त करने, अत्याचार और प्रतिबन्धोंसे आजादी हासिल करनेके लिए, और हम जेलसे लौटकर इसलिए नहीं आये हैं कि एक ऐसे कानून या उसके संशोधित रूपके सामने घुटने टेक दें जिसका उद्देश्य हमसे वह अमूल्य थाती छीन लेना है। हम कानूनी मुहावरों और वकीलोंकी बारीकियोंके जंजालमें पड़ना नहीं चाहते। हम आम लोग अपने सम्मानकी रक्षा चाहते हैं और यह वृहद सभा इसी उद्देश्यसे बुलाई गई है।"