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१८८. फिर सत्याग्रहकी लड़ाई

जनरल स्मट्स कहते हैं कि वे कानूनको रद कर देंगे, किन्तु एक खास शर्तपर। इससे ट्रान्सवालके भारतीय युद्धमें जो एक और लड़ाई बाकी रह गई थी, वह अब घोषित हो गई है। जो बड़े युद्ध होते हैं उनमें एकसे अधिक लड़ाइयाँ होती हैं। रूस और जापानका युद्ध एक वर्षसे अधिक चला। उसमें पोर्ट आर्थरकी लड़ाई और मुकडेनकी लड़ाई आदि चार-पाँच जानने लायक लड़ाइयाँ हुई। बोअर-युद्ध दो-तीन वर्ष चला। उसका अन्त भी कई लड़ाइयाँ होनेके बाद हुआ। ट्रान्सवालके भारतीयोंका युद्ध ऊपर बताये गये युद्धोंकी भाँति शस्त्र-युद्ध नहीं है। तथापि वह भी एक युद्ध तो है ही; क्योंकि परिणामकी बात देखें तो यह सत्याग्रहका युद्ध ऊपर बताये गये गोला-बारूद के युद्धोंसे कम नहीं है। [दूसरे] उपनिवेशोंमें भारतीयोंकी---एशियाइयोंकी---क्या दशा होगी, यह बहुत-कुछ वर्तमान मामलेकी हार-जीतपर निर्भर है। दूसरा कोई भी परिणाम इस परिणामसे अधिक महत्त्वका नहीं हो सकता। इस दृष्टिसे देखते हुए ट्रान्सवालके मुट्ठी-भर भारतीयोंके झगड़ेकी तुलना उक्त बड़े शस्त्र युद्धोंसे करनेमें हम झिझकते नहीं।

युद्धमें अनेक लड़ाइयाँ जीती जायें किन्तु अन्तिम लड़ाईमें हार हो जाये तो सारी जीत व्यर्थ हो जाती है। ट्रान्सवालके भारतीयोंके सत्याग्रहपर भी यह बात लागू होती है। पहली लड़ाई १९०६ में हुई।[१] वह इंग्लैंडके राजनीतिक क्षेत्रके मैदानोंमें लड़ी गई और शिष्टमण्डल विजय प्राप्त करके लौटा। उसके बाद एकसे अधिक लड़ाइयाँ हुई, और उनमें भारतीय जातिने अपनी तेजस्विता भली-भाँति प्रकट की और दुनियामें यह ख्याति प्राप्त की कि मुट्ठी-भर वीर भारतीयोंने साहस और सत्यके आधारपर बोअरोंको हरा दिया। फिर भी समझौतेसे कितने ही भारतीयों में असन्तोष फैला, क्योंकि, उनके कहनेके अनुसार, लड़ाई पूरी तरह नहीं लड़ी गई। इस प्रकार जो काम अधूरा रह गया था उसको पूरा करनेका अवसर अब जनरल स्मट्सने दिया है। इसीलिए हम यह मानते हैं कि प्रत्येक सत्याग्रही भारतीय फिर युद्ध आरम्भ होनेसे अप्रसन्न न होगा और हुंकार भरकर खड़ा हो जायेगा। लड़ाईके पूरा होनेसे पहले ही उसे बन्द करनेसे जो लोग नेताओंसे नाराज हुए थे उनको अब यह सिद्ध करनेका अवसर मिला है कि उनकी वह भावना सच्ची है। उनको अन्य लोगोंके साथ तुरन्त खड़ा होकर पुकारना चाहिए कि भारतीयोंके सम्मान और अधिकारोंकी रक्षाके लिए वे अपने प्राणों और धनकी आहुति देनेके लिए तैयार हैं। यदि ट्रान्सवालकी भारतीय जाति इस बार --अब तो यह अन्तिम बार ही है--यह उत्साह दिखायेगी तो उसकी जीतका डंका अवश्य बजेगा; इसमें हमें कोई सन्देह नहीं है।

यह लड़ाई ऊपर बताये गये युद्धकी अन्तिम लड़ाई है और इसमें विजय प्राप्त करना विशेष रूपसे आवश्यक है। इसके परिणामपर विशेषतः दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी स्थिति बहुत कुछ निर्भर है। एक ओर नेटालमें घटाएँ घनी हो रही हैं।[२] दूसरी ओर रोडेशियामें

 
  1. तात्पर्य ट्रान्सवाल भारतीयोंके शिष्टमण्डलसे है, जो इंग्लैंड गया था। देखिए खण्ड ६।
  2. देखिए "नेटालका परवाना कानून", पृष्ठ २७८।