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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पंजीयनका कानून पास हो चुका है।[१] वहाँकी संसदमें एक सदस्य कह चुका है कि ट्रान्सवालमें कानून कहाँ रद हुआ है। इससे प्रकट होता है कि ट्रान्सवालके भारतीयोंको इस मुर्दा कानूनको श्मशानमें पहुँचाकर ठिकाने लगाना होगा। उनको अपने लिए और वैसे ही समस्त दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके लिए फिर कमर कसनी चाहिए। और सार्वजनिक सभाकी रिपोर्टसे जान पड़ता है कि वे तैयार हो ही चुके हैं। हम इसके लिए उन्हें बधाई देते हैं और सलाह देते हैं कि वे एक बार जबर्दस्त धावा बोलकर शत्रुको अपनी पूरी शक्ति दिखा दें। सत्याग्रहकी तलवार इस्पातकी तलवारको भी निस्तेज करनेवाली है। उसकी धार सत्य और न्यायकी है; और उसमें मूठ ईश्वरीय सहायताकी लगी है। उससे जो लड़ता है उसको हारनेका डर रहता ही नहीं। इसलिए हे वीर भारतीयो! उठो, और बाट न जोहकर सत्याग्रहकी तलवारको धारण करके विजय प्राप्त करो। जबसे जापानी वीरोंने मंचूरियाके मैदानमें रूसियोंको धूल चटाई है, तबसे पूर्वमें सूर्योदय हो चुका है। यह प्रकाश आज समस्त एशियाई लोगोंपर पड़ने लगा है। अब पूर्वके लोग घमण्डी गोरोंके द्वारा किये गये अपमानको अधिक समय तक हर्गिज सहन न करेंगे।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २७-६-१९०८

१८९. सर्वोदय [७]

दौलतकी नसें

हम देख चुके हैं कि धनका मूल्य उसके द्वारा लोगोंकी मजदूरी ले सकनेपर आधारित है। यदि मजदूरी मुफ्तमें मिल जाये तो पैसेकी गरज नहीं रहती। और पैसेके बिना मनुष्योंकी मजदूरी मिल सकनेकी मिसालें देखनेमें आया करती हैं। धनबलकी अपेक्षा दूसरा बल---नीतिबल--- अधिक काम कर डालता है, ऐसी मिसालें भी हम देख चुके हैं। जहाँ धन-बलसे काम नहीं चल सकता, वहाँ सद्गुणसे चल जाता है, सो भी हम देख चुके हैं। इंग्लैंडमें कई स्थानोंपर लोगोंको पैसेसे बहकाया नहीं जा सकता।

फिर, अगर हम मानते हैं कि लोगोंसे काम लेनेकी शक्ति ही दौलत है, तो हम यह भी समझ सकते हैं कि मनुष्य जितना चतुर और नीतिवान होगा उतनी ही उसके धनमें वृद्धि होगी। इस प्रकार विचार करनेपर हम देखेंगे कि वास्तविक धन सोना-चाँदी नहीं बल्कि खुद इन्सान ही है। धनकी खोज पृथ्वीके गर्भमें नहीं करनी है, उसे तो मनुष्यके हृदयमें खोजना है। और अगर यह सही है तो अर्थ-शास्त्रका सही नियम यह ठहरा कि जहाँतक हो सके लोगोंको तनमें, मनमें और मानमें नीरोग रखना। ऐसा अवसर भी आ सकता है, जब इंग्लैंड गोलकुण्डाके हीरोंसे गुलामोंको सजा कर अपनी दौलतका दिखावा करनेके बदले अपने नीतिवान महापुरुषोंकी ओर इंगित करके (जैसा कि ग्रीसके एक सच्चे प्रख्यात पुरुषने कहा था) कह उठे "यह मेरी दौलत है"।

सही न्याय

ईसासे कुछ शताब्दी पूर्व एक यहूदी व्यापारी हो गया है। उसका नाम सॉलोमन था। उसने बहुत धन कमाया था और वह बहुत प्रसिद्ध हुआ था। उसकी कहावतें आज भी

 
  1. देखिए "रोडेशियाके भारतीय", पृष्ठ २५७-८।