पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/३५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१७
मुस्तफा कामेल पाशाका भाषण

यूरोपमें प्रचलित हैं। वेनिसके लोग उसे इतना चाहते थे कि उन्होंने वहाँ उसकी मूर्ति खड़ी की थी। यद्यपि उसकी कहावतें इस जमानेमें कण्ठाग्र कर ली जाती हैं, तथापि उनके अनुसार व्यवहार करनेवाले लोग बहुत कम हैं। वह कहता है, "जो लोग झूठ बोल कर धन कमाते हैं वे अभिमानी हैं और वह उनकी मृत्युका चिह्न है।" एक दूसरी जगह उसने कहा है कि "हरामखोरोंका धन कुछ भी लाभ नहीं पहुँचाता। सत्य मौत से बचाता है।" इन दोनों कहावतोंमें सॉलोमनने बतलाया है कि अन्यायसे कमाई हुई दौलतका नतीजा मौत है। इस जमानेमें झूठ और अन्याय ऐसी चतुराईसे बोला और किया जाता है कि साधारण तौरपर हमें उनका पता नहीं चल पाता। उदाहरणके लिए, झूठे विज्ञापन निकाले जाते हैं; वस्तुओंपर ऐसे नाम लगाये जाते हैं जिनसे आदमी भ्रमित हो जाये, इत्यादि।

वह बुद्धिमान मनुष्य फिर कहता है कि "जो लोग अपनी दौलत बढ़ानेकी खातिर गरीबोंको सताते हैं वे अन्तमें भीख माँगते फिरेंगे।" आगे वह कहता है कि "गरीबोंको मत सताओ क्योंकि वे गरीब हैं। व्यापारमें पीड़ितोंपर अत्याचार मत करो, क्योंकि जो गरीबोंको सतायेंगे उन्हें ईश्वर सतायेगा।" तिसपर भी आज तो व्यापारमें मरे हुएको ही ठोकर मारी जाती है। जो व्यक्ति मुसीबतमें फँस गया हो उससे हम अपना लाभ उठानेको उद्यत हो जाया करते हैं। डाकू तो धनवालोंको लूटते हैं, मगर व्यापारमें गरीबों को लूटा जाता है।

आगे सॉलोमन कहता है कि अमीर और गरीब दोनों समान हैं। ईश्वर उनका सिरजनहार है, ईश्वर उन्हें ज्ञान देता है।" अमीरका गरीबके बिना और गरीबका अमीरके बिना काम नहीं चलता---एकको दूसरेकी आवश्यकता सदा पड़ती ही रहती है। इसलिए कोई किसीको ऊँचा या नीचा नहीं कह सकता। लेकिन जब ये दोनों अपनी समानताको भूल जाते हैं और इस बातको भी विस्मृत कर देते हैं कि ईश्वर उनको समझ देनेवाला है, तब परिणाम विपरीत आता है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २७-६-१९०८

१९०. मुस्तफा कामेल पाशाका भाषण[१]

अपनी मृत्युके कुछ ही माह पूर्व मुस्तफा कामेल पाशाने अलेक्जैंड्रियामें एक जोशीला भाषण दिया था। वह भाषण बहुत जानने योग्य है और उससे हम सभी कुछ-न-कुछ सीख सकते हैं। इसलिए हम उसका अनुवाद यहाँ दे रहे हैं।[२]

यह भाषण जीजीनिया थियेटरमें १९०७ की २२ अक्तूबरको दिया गया था। कहते हैं कि इस भाषणको सुननेके लिए ६,००० से ज्यादा लोग उपस्थित थे।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २७-६-१९०८
 
  1. मुस्तफा कामेल पाशा के संक्षिप्त जीवन-परिचयके लिए देखिए "मिस्रके प्रख्यात नेता", पृष्ठ १५९-६० और १६७-६९।
  2. भाषण यहाँ नहीं दिया जा रहा है।