१९४. पत्र: एच० एल० पॉलको
जोहानिसबर्ग,
जुलाई १, १९०८
प्रिय श्री पॉल,
मैं दरअसल इतना व्यस्त रहा कि आपके पत्रका उत्तर नहीं दे सका। मैं नहीं समझता कि इस समय श्री रुस्तमजीको कष्ट देनेकी आवश्यकता है क्योंकि मैंने जोज़ेफका मार्गव्यय[१] देने लायक काफी रुपया इकट्ठा कर लिया है और श्री रिचको वह रकम उन्हें दे देने का अधिकार दे दिया है। अर्थात् मेरे पास २० पौंड हैं। यदि वे थोड़े-से पौंड, जो ब्रायन गैब्रियल[२] और लॉरेन्सने[३] अबतक इकट्ठे किये हैं, उनको भेजे जा सकें तो उन्हें अधिककी आवश्यकता न होगी। यदि आप थोड़ा रुपया और इकट्ठा कर सकें तो उससे उनकी दिक्कत थोड़ी कम हो जायेगी। बस इतनी ही बात है।
मुझे प्रसन्नता है कि मेरी संरक्षिता[४] मुझे बिलकुल भूली नहीं है। मुझे इस बातकी भी प्रसन्नता है कि वह संगीतमें बहुत अच्छी प्रगति कर रही है। मुझे उसने और आपने भी वचन दिया है कि वह अपनी प्रतिभाका उपयोग फीनिक्सके और फीनिक्सके द्वारा समस्त भारतीय समाजके लाभके लिए करेगी। इसलिए मेरी सम्मतिमें यह एक अच्छी पूँजी है।
मुझे आशा है कि आप सबका स्वास्थ्य अच्छा होगा। स्थानीय संघर्ष लम्बा हो सकता है या कुछ दिनोंमें समाप्त हो सकता है। यदि लोग मजबूत रहें तो इसका एक ही परिणाम सम्भव है।
आपका हृदय से,
मो० क० गांधी
टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ४५४८) से।
सौजन्य: इ० जे० पॉल, पीटरमैरित्सबर्ग।