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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(३) परवानेकी रकम दी जाये; किन्तु यदि परवाना न मिले, तो बिना परवानेके रोजगार किया जाये।

इन कामोंमें से किसीको करते हुए यदि जेलकी सजा मिले, तो उसे भोगना चाहिए। हम लोग जब ऐसा करेंगे, तब तुरन्त मुक्ति प्राप्त होगी। आजतक सब अपने-अपने लिए लड़ते थे। अब तो जिन्हें स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र प्राप्त हो चुके हैं, वे ऊपर बताये हुए विशिष्ट व्यक्तियोंके लिए लड़ेंगे।

यदि हम न लड़ें, तो हमारा सत्याग्रह सच्चा नहीं माना जायेगा। यह कोई ऐसी तलवार नहीं जो केवल एक बार काममें आये और फिर काममें न आये। यदि हमने उसके पानीको भली-भाँति समझ लिया है, तो वह हम जब लड़ेंगे, तभी काम देगी। यह फौलादकी तलवारसे अधिक शक्तिशाली है, केवल हममें दुःख सहन करनेकी सामर्थ्य होनी चाहिए। हमें जेलसे नहीं डरना चाहिए। हमें मकईका दलिया (पुपु) खाने में कोई हर्ज न समझना चाहिए।

किन्तु हम बाहर कैसे जा सकते हैं?

यह सवाल बहुतसे लोगोंने किया है। यदि लोग अपने प्रमाणपत्र जला दें और ट्रान्सवालसे जानेके बाद फिर कभी दाखिल होना हो, तो उसके लिए अधिकारपत्र क्या होगा? इस सवालमें ही सत्यके आग्रहकी कमी निहित है। मेरा उत्तर यह है कि ट्रान्सवालवासी भारतीयोंको तभी अधिकारपत्रकी जरूरत होगी जब उन्हें भारत जानेके लिए उसकी आव- श्यकता हो। ट्रान्सवालवासी भारतीय पंजीयन प्रमाणपत्रोंके बिना भी बेशक दाखिल हों। दाखिल होनेमें जोखिम यही रहता है कि सरकार जेल भेज देगी। वह भले ही जेल भेजे; किन्तु जमानत नहीं देनी है। जमानतपर नहीं छूटना है। जुर्माना नहीं देना है। बचाव नहीं करना है; उसके लिए वकीलकी जरूरत पड़ती है। यदि बचाव करनेकी जरूरत हुई तो उसमें श्री गांधी पहलेकी तरह ही निःशुल्क बचाव करेंगे। शर्त यही है कि व्यक्ति सत्याग्रही हो, उसका मामला सच्चा हो, और उससे समाजका हित सिद्ध हो।

सर्वोच्च न्यायालय

ऊपरके विचारोंके अनुसार चलनेवालोंका सर्वोच्च न्यायालयके मुकदमेसे कोई ताल्लुक नहीं है। यदि इस मुकदमेके फलस्वरूप प्रार्थनापत्रोंके फार्म वापस मिल जायें तो ठीक है, तब अन्त जल्दी होगा। किन्तु यदि वे फार्म वापस न मिलें, तो उससे भी कोई अन्तर नहीं पड़ता। हममें शक्ति चाहिए। यदि फार्म वापस मिलते हैं तो उसका अर्थ भी यहीं होता है कि पंजीयन प्रमाणपत्र अवैध हो जाते हैं। पंजीयन प्रमाणपत्रोंको जलानेका अर्थ भी यहीं होता है। यह मानना ठीक नहीं है कि फार्म वापस मिल जानेपर भी पंजीयन प्रमाणपत्रोंसे काम चलाया जा सकेगा। बिना फार्मोके पंजीयन प्रमाणपत्र बिना कारतूसकी बन्दूक जैसे हैं। प्रार्थनापत्रोंके फार्म वापस माँगनेका हेतु इतना ही है कि पंजीयन प्रमाणपत्र तुरन्त अवैध हो जायेंगे। हम प्रमाणपत्रोंको जला दें तो इससे वे अवैध नहीं होते, क्योंकि सरकारके पास उनकी नकलें हैं और प्रार्थनापत्रोंमें सारी कैफियत मौजूद है।

हमारी आशंका यह है कि हम प्रमाणपत्र जला दें तो भी सरकार हमपर मुकदमा न चलायेगी। हम जेल जाना चाहते हैं। सरकार हमें जेल भेजना नहीं चाहती। इसलिए प्रार्थनापत्र वापस माँगना जेल जानेका सबसे अच्छा उपाय है।