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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

छोड़ेंगे और खूनी कानूनको स्वीकार नहीं करेंगे। उनके मामलेसे भारतीय समाजका बहुत लाभ होनेकी सम्भावना है। श्री सोराबजी सरकार द्वारा गिरफ्तार किये जानेकी प्रतीक्षामें हैं।

फेरीवाले

भारतीय फेरीवाले अक्सर पूछते हैं कि बिना परवानेके वे क्या करें। उनके पास अनुमतिपत्र है, किन्तु स्वेच्छापूर्वक लिया गया पंजीयन प्रमाणपत्र नहीं है, क्योंकि वे सरकारसे झगड़ा शुरू होनेके बाद आये। वे अनिवार्य पंजीयन प्रमाणपत्र लेना नहीं चाहते। ऐसे दो भारतीयों, श्री इस्माइल अहमद तथा इब्राहीम मरोलियाने बिना परवानोंके व्यापार शुरू किया है। उन्होंने श्री गांधीको पत्र लिखा है कि संघकी सलाहसे वे बिना परवानोंके व्यापार कर रहे हैं। वे जेल जानेके लिए तैयार हैं और यदि वे पकड़े गये, तो श्री गांधी निःशुल्क उनकी ओरसे पैरवी करेंगे। हमें आशा है कि इसी प्रकार हिम्मतके साथ अन्य फेरीवाले भी संघर्ष करेंगे। किसीका व्यापारके बिना बैठे रहना आवश्यक नहीं है।

ईसप मियाँका पत्र

श्री ईसप मियाँने सरकारके नाम और नगरपालिकाके नाम पत्र लिखे हैं कि ऐसे भारतीय भूखों नहीं मरना चाहते, उन्हें व्यापार करनेकी जरूरत है, इसलिए, और चूँकि नगरपालिका परवाने नहीं देती इसलिए भी, वे बिना परवानोंके व्यापार करेंगे। यदि सरकार परवाने दे, तो वे अब भी परवाने लेनेके लिए तैयार हैं।

इस प्रकार इस समय चारों तरफसे स्वेच्छापूर्वक लिये गये पंजीयन प्रमाणपत्र जलानेका संघर्ष जम गया है। एक तरफ आन्दोलन चल रहा है, दूसरी तरफ बिना परवानोंके फेरीवाले व्यापार कर रहे हैं और तीसरी तरफ श्री सोराबजीका मामला चल रहा है। अब देखना है कि जनरल स्मट्स इसमें से किस तरह निकल पाते हैं। मैं नहीं मानता कि वे सत्याग्रहका तेज फीका कर सकेंगे। सारा दारोमदार भारतीयोंकी एकता और बहादुरीपर है।

केपका सम्मेलन

केप टाउनके सम्मेलनको हमीदिया इस्लामिया अंजुमनने तार दिया था। उसके जवाबमें धन्यवादका तार आया है और उसमें कहा गया है कि भारतीय संघोंको एक करनेका प्रस्ताव पास किया गया है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-७-१९०८