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१९६. पत्र: अखबारोंको

जोहानिसबर्ग
जुलाई २, १९०८

महोदय,

सर्वोच्च न्यायालयने फैसला दिया है कि एशियाइयोंको स्वेच्छया पंजीयन प्रार्थनापत्रोंको वापस लेनेका कोई अधिकार नहीं है।[१] स्वेच्छासे पंजीकृत एशियाइयोंका न्यायालयमें जानेका उद्देश्य यह था कि वे उसी स्थितिमें रहना चाहते हैं जिसमें उनके अ-पंजीकृत भाई हैं। उनका कहना है कि इन अ-पंजीकृत लोगोंको उनके साथ समान स्तरपर रखे जानेका अधिकार है; किन्तु जनरल स्मट्सका कहना है कि उनको देशसे निर्वासित कर देना चाहिए या अनुपस्थित होनेपर अपने अधिवासके देशमें वापस न आने देना चाहिए।

जनरल स्मट्सको कानूनके अत्यन्त सूक्ष्म तकनीकी मुद्देपर जो संदिग्ध विजय प्राप्त हुई है उससे एशियाइयोंका अपने पंजीयनको वापस लेनेका उद्देश्य विफल न होगा, बशर्ते कि उनमें पर्याप्त साहस और आत्मत्यागका भाव हो।

सर्वोच्च न्यायालयको दिये गये प्रार्थनापत्रका आधार कानूनी और नैतिक रखना पड़ा था। कानूनी आधार यह था कि दोनोंमें से प्रत्येक पक्ष सर्वोच्च न्यायालयसे कोई राहत प्राप्त किये बिना समझौतेको रद कर सकता है। नैतिक आधारपर यह दिखाना था कि एशियाई इसको रद मान कर चलना चाहते हैं, क्योंकि जनरल स्मट्सने इसे तोड़ दिया है।

समझौता दो तरहसे तोड़ा गया है। जनरल स्मट्स स्वीकार न करने योग्य शर्ते लगाये बिना अधिनियमको रद करना नहीं चाहते और वे समझौतेके अन्तर्गत उन लोगोंका स्वेच्छया पंजीयन स्वीकार नहीं करते जो अब देशमें प्रवेश कर रहे हैं और जिनको इसका अधिकार है। जनरल स्मट्स इस बातसे इनकार करते हैं कि उन्होंने कानूनको रद करनेका वचन दिया था और समझौतेका यह अर्थ लगाते हैं कि जो लोग समझौते की तारीखके बाद तीन महीने बीत जानेपर देशमें आये हैं वे अधिनियमके अन्तर्गत पंजीयन करायें। लोग निम्नलिखित शब्दोंके अर्थका निर्णय स्वयं करें:

इन स्थितियोंमें, हम सरकारसे सम्मानपूर्वक एक बार फिर कहेंगे कि १६ वर्षसे अधिक आयुके समस्त एशियाई लोगोंको एक निश्चित अवधिके भीतर---जैसे तीन महीनेमें--पंजीयन करानेकी अनुमति दी जाये और उन सबपर, जो इस प्रकार पंजीकृत हो जायें, अधिनियम लागू न किया जाये और सरकार ऐसे पंजीयनको वैध करनेके लिए जो कदम उठाना उचित समझे, उठाये। 'पंजीयनका ऐसा तरीका' उन लोगोंपर भी लागू हो जो उपनिवेशसे बाहर हों और लौट सकते हों तथा जिनको अन्यथा पुनः प्रवेशका अधिकार प्राप्त हो।[२]

जनरल स्मट्स कहते हैं कि जो लोग उपनिवेशके बाहर थे उनको समझौतेके अन्तर्गत आनेका अधिकारी होनेके लिए तीन महीनेके भीतर लौट आना था। मैं पूछता हूँ कि क्या

 
  1. अदालतके फैसलेके लिए देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ३४०-४३।
  2. देखिए "पत्र: उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ ३९-४१।