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१९७. आत्म-बलिदान

ट्रान्सवालका संघर्ष प्रत्येक भारतीयको समझ लेना चाहिए। इससे पूर्व हम अनेक उदाहरणों द्वारा सत्याग्रहका अर्थ बतला चुके हैं।[१] उस अर्थको अब पूरी तौरपर कार्यान्वित करनेका अवसर आ पहुँचा है। सत्याग्रह और स्वार्थ एक साथ नहीं टिक सकते। सत्याग्रहमें सदा स्वयंका---आत्मका---बलिदान करना पड़ता है। अनुमतिपत्रवाले भारतीयोंको अधिकार प्राप्त हो चुके हैं; उनके हकमें सरकार खूनी कानूनको रद कर देने के लिए राजी है। फिर भी डच सरकारको तीन पौंडी कर अदा करके पंजीयन करा चुकनेवालों तथा शिक्षितोंकी खातिर, अनुमतिपत्रवालोंके लिए आत्म-बलिदानका यही समय है। इस अवसरका हम विवाहोत्सवकी भाँति स्वागत करते हैं और यह चाहते हैं कि प्रत्येक भारतीय ऐसा ही करे। सत्याग्रहका वास्तविक रूप तो अब प्रकट होगा। कानूनको रद करना तो सरकार स्वीकार कर ही चुकी है। परन्तु चूँकि उसकी शर्ते भारतीय समाज माननेको तैयार नहीं है इसलिए मामला अटका पड़ा है। यह कोई ऐसी-वैसी बात नहीं है। इस प्रकारसे भारतीय समाजको सरकारसे टक्कर लेनेकी क्षमता रखनेवाला वर्ग मान लिया गया है। कानून बनानेमें उसे भारतीयोंकी राय लेनी पड़ती है। ऐसा मौका सत्याग्रहके कारण ही उत्पन्न हुआ है।

इससे पहलेवाले संघर्षमें स्वार्थ घुसा हुआ था। ट्रान्सवालमें संघर्ष करनेवाला प्रत्येक भारतीय अपने तथा कौमके हकोंकी रक्षा किया करता था। अब प्रत्येक भारतीय अपने भाईके अधिकारोंकी रक्षा करेगा। इसीमें सच्ची खूबी है।

यदि भारतीय समाज ऐसा परोपकारका काम कर पायेगा तो अमर हो जायेगा। स्वयं सुखपूर्वक रहेगा और दूसरोंको सुख पहुँचायेगा। और समस्त भारतवर्ष समाजकी सराहना करेगा। अतएव, हम आशा करते हैं कि भारतीय समाज सजग रहेगा।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-७-१९०८
 
  1. देखिए "सत्याग्रहका भेद", पृष्ठ ८८-९० और "नेटालके परवाने", पृष्ठ २०७-०८ ।